अलीगढ़: हाथरस में दलित महिला की कथित सामूहिक दुष्कर्म और मौत के मामले में टिप्पणी करने को लेकर जवाहरलाल नेहरू मेडिकल कॉलेज (जेएनएमसी) के दो डॉक्टरों के कथित बर्खास्तगी की मीडिया और सोशल मीडिया में तीखी आलोचना के बाद अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय (एएमयू) ने उनके कार्यकाल को वापस बढ़ा दिया है. एएमयू के प्रवक्ता ओमर सलीम पीरजादा ने कहा कि, “अस्पताल के मुख्य चिकित्सा अधिकारी के अनुरोध पर विश्वविद्यालय ने गुरुवार रात को दो डॉक्टरों के कार्यकाल को बढ़ाने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है.”
कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त करने का आदेश
हाथरस में सामूहिक दुष्कर्म और मौत के मामले की जांच कर रही सीबीआई की टीम ने अस्पताल का दौरा करने के एक दिन बाद मंगलवार को मुख्य चिकित्सा अधिकारी एसए जैदी की तरफ से दो डॉक्टरों डॉ मोहम्मद अजीमुद्दीन और डॉ ओबैद इम्तियाज के कॉन्ट्रैक्ट को समाप्त करने का आदेश जारी किया गया था.
एएमयू कुलपति को लिखा पत्र
एएमयू अधिकारियों ने बर्खास्तगी के आरोपों को सिरे से नकार दिया है और कहा है कि दोनों डॉक्टर 9 सितंबर से एक महीने के लिए अस्थायी तौर पर रिक्त पदों पर नियुक्त हुए थे. वहीं, रेजिडेंट डॉक्टर्स एसोसिएशन (आरडीए) ने भी एएमयू कुलपति को पत्र लिखा था और उनसे बर्खास्त से जुड़े आदेश को वापस लेने के लिए तत्काल कदम उठाने का आग्रह किया था.
अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन
आरडीए अध्यक्ष मोहम्मद हमजा मलिक और महासचिव मोहम्मद काशिफ की तरफ से हस्ताक्षरित पत्र में कहा गया है कि दो डॉक्टरों के खिलाफ कार्रवाई से ‘प्रतिशोध की राजनीति’ की बू आती है और इसका उद्देश्य अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार का हनन करना है.
बात रखने का मौका नहीं दिया गया
दोनों डॉक्टरों ने संवाददाताओं से कहा था कि ”उन्हें इस कदम से काफी निराशा हुई थी, क्योंकि उन्हें अधिकारियों के सामने अपनी बात रखने का मौका नहीं दिया गया था.” वहीं, मीडियाकर्मियों की तरफ से पूछे गए एक सवाल के जवाब में उन्होंने संकेत देते हुए कहा कि शायद हाथरस मामले पर राय देने के परिणामस्वरूप ये कार्रवाई हुई होगी.
इलाज के दौरान हुई मौत
गौरतलब है कि, हाथरस में 19 वर्षीय पीड़िता को दिल्ली रेफर किए जाने से पहले इसी अस्पताल में इलाज चल रहा था. हालांकि, बाद में दिल्ली के एक अस्पताल में उसकी मौत हो गई थी.
11 दिन बाद नमूने एकत्र किए
डॉक्टरों में से एक ने टिप्पणी की थी कि मामले में एफएसएल रिपोर्ट में शुक्राणु (सीमेन) का कोई निशान नहीं पाया गया, जो ये दर्शाता है कि कोई दुष्कर्म नहीं हुआ था. डॉक्टर ने कथित तौर पर दावा किया था कि एफएसएल रिपोर्ट में कोई स्पष्ट सबूत नहीं था, क्योंकि अपराध के 11 दिन बाद नमूने एकत्र किए गए थे.
चिकित्सकों के बर्खास्त आदेश को निरस्त करने की मांग
इसी बीच प्रोग्रेसिव मेडिकोज एंड साइंटिफिक फोरम (पीएमएसएफ) के अध्यक्ष डॉ हरजीत सिंह भट्टी ने भी एएमयू के कुलपति को पत्र लिखा था, जिसमें ‘दो चिकित्सकों के बर्खास्त आदेश को निरस्त करने’ की मांग की गई थी. मेल के जरिए गुरुवार को भेजे गए पत्र में कहा गया था कि ऐसा प्रतीत होता है कि दोनों डॉक्टरों ने ”हाथरस दुष्कर्म पीड़िता के नमूनों से संबंधित तथ्यात्मक रूप से सही और वैज्ञानिक रूप से प्रमाणित जानकारी देने की कीमत चुकाई है.”

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