prachand personal interviewविश्व के सबसे बड़े माओवादी नेता और नेपाल के पूर्व प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल उर्फ प्रचंड का मानना है कि मौजूदा वैश्विक परिदृश्य मे अब किसी भी राजसत्ता की चाबी सिर्फ बंदुक की नली से होकर नही निकल सकती। क्रांतिकारियों को राजसत्ता तक पहुंचने के लिए शांति प्रक्रिया से होकर गुजरना ही होगा। माओवाद के सिद्धांत को समाने रखकर नेपाल की राजसत्ता के खिलाफ करीब दस वर्षों तक जनयुद्ध करने के बाद विश्व के इस बड़े माओवादी नेता ने भी शांति प्रक्रिया में हिंसा लेकर ही नेपाल की सर्वोच्च सत्ता को प्राप्त किया और नेपाल में राजशाही के खात्मे के बाद माओवादी सरकार के प्रधानमंत्री भी बने। भारत सहित विश्व में माओवाद का भविष्य, जनयुद्ध के दिनों में प्रचंड का छत्तीसगढ़ प्रवास, भारत नेपाल संबंध,और नेपाल की मौजूदा परिस्थिति सहित कई अन्य मुद्दों पर प्रमुख माओवादी नेता पुष्प कमल दहाल उर्फ प्रचंड से छत्तीसगढ़ प्रमुख ने विस्तार से बातचीत की। पेश है बातचीत के कुछ प्रमुख अंश…

पहला सबाल तो यही कि बहुत लंबा सफर रहा है माओवाद को लोकतंत्र के करीब तक आने का,जंगल से लेकर नेपाल की सर्वोच्च सत्ता तक के इस पूरे सफर के बारे में कुछ बताएं?

मैं सबसे पहले यही कहना चाहूंगा कि बहुत लंबा सफर अभी बाकी है. निश्चित रूप से हम चुनौतीपूर्ण सफर तय करके यहां तक आ गए हैं. लेकिन मानव जाति में जो भेदभाव है,अपमान है,अन्याय है. पूरी दुनिया में उसको खत्म करने के लिए अभी बहुत लंबा सफर पूरा किया जाना बाकी है. फिर भी हमारे यहां हमारी विशिष्ट स्थिति में जिस तरीके से हम संविधान सभा में नया संविधान बनाने के लिए काम कर रहे है वो संविधान जिसे बनाने के लिए नेपाल की जनता ने पिछले पचास साठ सालों से संघर्ष किया है. कभी सशस्त्र संघर्ष किया तो कभी ‘शांतिपूर्ण आंदोलन किया है. सबसे ज्यादा हमारी पार्टी के लीडर के नेतृत्व में जो जनयुद्ध हुआ. उसके आधार पर एक बहुत बड़ा राजनीतिक परिवर्तन हो गया है. उस परिवर्तन को संस्थागत करने के लिए हम संविधान सभा में संघर्ष कर रहे हैं। और हमें वि’वास है कि यहां से जनता की भावनाओं को,जनता की आवश्यकताओं को जो आज की तारीख में नेपाल राष्ट्र की आवश्यकता है उसे पूरा करने में सफल होंगे.

हम उस या़त्रा को जानना चाहेंगे जो जंगल से शुरु होकर यहां तक पहुंचा। उसके कुछ महत्वपूर्ण यादें, कुछ महत्वपूर्ण क्षण जो बार बार याद आता है जब आप पीछे मुडकर देखते हैं?

-हमारे यहां जिस तरीके से हमने काम किया है वो हमारा अपना ही यूनिक अनुभव भी है. नेपाल में इनसर्जेंसी और पीपुल्स वार में जाने से पहले हम पार्लियामेंट में थे. यह बात समझना जरूरी है. और उस समय नेपाल में जो पार्लियामेंट था उसमें हम देश की तीसरी राजनीतिक शक्ति के रूप में थे. हम उस मंच से ही नेपाली जनता की आधारभूत मांगों को वहीं से पूरा करना चाहते थे, लेकिन नेपाल का जो सिस्टम था, जो राज्य की मशीनरी थी, वह नेपाली जनता की आधारभूत जरूरतों को पूरा करने के लिए तैयार नहीं थी और क्योंकि हमने जनता की भावनाओं को जनता की आव’यकताओं को खासकर उन लोगों को जिनको पुराने समाज से पुराने राज्य से ज्यादा उत्पीडि़त किया गया था ऐसे लोगों को मार्जिनलाइज पीपुल या अल्पसंख्यक लोग भी कह सकते है। उनकी मांगों को हमने वहां से बुलंद करने की कोशिश की. तो उन मांगों को पूरा करने की बजाय उस समय की राज्य मशीनरी ने हमारा जो स्ट्रांग होल्ड था वहां बहुत बड़ा दमन होने लगा । वैसी परिस्थिति में जनता के सामने प्रतिरोध करने के सिवा कोई चारा नहीं था। वैसी परिस्थिति में वहां रेजिस्टेंस मूवमेंट शुरु हुआ। दूसरी बात हमने जिस तरीके से आंदोलन को शुरू किया वह भी यूनिक है. हमारे देश की परिस्थिति हमारी क्षेत्रीय परिस्थिति और आज की तारीख में विश्व की परिस्थिति और सब को ध्यान देते हुए, पूरी दुनिया में क्रांति और प्रतिक्रांति का जो चक्र चला वो सभी चक्र को भी ध्यान देते हुए हमने अपने ही तरीके से फिर पीपुल्स वार शुरू किया। हमने भारत के कम्युनिस्ट आंदोलन का भी बहुत गहराई से अध्ययन करने की कोशिश की. भारत में कम्युनिस्ट आंदोलन का बहुत लंबा इतिहास है. और इसका पांजिटिव और निगेटिव लेसन भी है. उसको भी हमने समझने का प्रयास किया. फिर हमने ट्रेडिशनल तरीके से, क्लासिकल तरीके से जो पीपुल्स वार की बात होती थी वहां से थोड़ा उसमें नई आइडियोलाजी तैयार करके कुछ नए तरीके से इनिशिएट किया. इसलिए दस साल के अंदर ही अंदर पूरे देश की पूरे रूरल एरिया,में हमारा स्टांग होल्ड हो गया। आप लोग जंगल कहते हैं हम जंगल कहना पसंद नहीं करते हम तब भी जनता के बीच में ही थे हम काठमांडू में भी थे, हम गांव में भी थे, कभी कभी जंगल में भी जाते थे लेकिन हम उस समय जनता के बीच में ही थे. आपको यह सुनकर आ’चर्य भी हो सकता है कि रूरल एरिया का 80 प्रतिशत एरिया हमारे कंट्रोल में आ गया था.,दस साल के अंदर ही अंदर। क्योंकि हमने जनता की भावना को साथ लेकर ही आंदोलन शुरु किया था. फिर भी वैसा अनुभवों का बहुत श्रृंखला है। उसमें कई बार तो हम मृत्यु के मुख में बार बार पहुंचते थे और थोड़ा थोड़ा करके बच जाते थे । सबसे ज्यादा तो जब मैं रो्ल्पा में रहता था और वहां पर हेलिकाप्टर से बम बार्डिंग चला करता था. वहां पर मैं छह महीने से एक ही घर में रह रहा था. दो दिन पहले मुझे सूजना मिला कि वहां कुछ हो सकता है ।दो दिन पहले हमने उस घर को खाली कर दिया, लेकिन उस समय की सरकार को ऐसा लगा कि मैं उसी घर में ही हूं इसलिए उस घर को पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया। हम होते तो मारे जाते। कभी रास्ता में, कभी गांव में तो वैसा स्थिति आता रहता था, लेकिन फिर भी हमें नेपाल की जो मार्जिनलाईज पीपुल और उत्पीडि़त क्लास है उनकी भावनाओं को उनकी आव’यकताओं को उनकी चाहनाओं को मुखरित किया. और यही वजह था कि राज्य के दमन करने से भी हमारे मूवमेंट का एक्सपांसन होता चला गया। हम धीरे धीरे काठमांडू में भी इतने शक्तिशाली हो गए कि आपको ये भी एक युनिक अनुभव लग सकता हे । मजदूरों में मिडिल क्लास में भी हमारी बहुत बड़ी ताकत हो चुकी थी. इसलिए हमारी इंसजेर्सी और हमारे वार के जो अनुभव हैं वो काफी युनिक अनुभव हैं. और फिर इसका मतलब यह भी है कि हमने शुरु से ही सरकार से कहा कि हम पीस प्रोसेस में आने को तैयार हैं. हम डेमोक्रेटिक प्रोसेस में आने के लिए भी तैयार हैं.

लेकिन मैंने कई जगह पढ़ा है कि एक समय ऐसा भी था कि जब प्रचंड यह कहते थे कि जो लोग लिबरल थे वे संशोधनवादी हैं. फिर ऐसी क्या परिस्थितियां उत्पन्न हुई की प्रचंड को लोकतंत्र के नजदीक आने की जरूरत पड़ी। शांति प्रक्रिया अपनानी पड़ी?

देखिए ! सिद्धांत रुप से मार्क्सवाद के बारे में हमारी राय यह है कि यह कोई रिजीड यास्टैटिक फिलांसफी नहीं है. यह निरंतर गति में रहता है और परिस्थिति के मुताबिक उसको विकसित करना पड़ता है, मार्क्सवाद हमारे लिए साइंस है जो निरंतर विकसित अवस्था में रहता है, हमने जब मूवमेंट शुरू किया तो उस समय भी किसी का अंधानुकरण हमने नहीं किया. किसी भी देश की चाहे चाइना का हो चाहे वियतनाम का,हो चाहे रूस की हो, किसी भी क्रांति का अनुकरण करके हम आगे नहीं जा सकते हैं. मार्क्सवाद की फंडामेंटल थ्योरी को समझना चाहिए. किसी भी देश की परिस्थिति के अनुसार आगे जाना चाहिए. आज की तारीख में हमें अपनी परिस्थिति के मुताबिक ही हमें आंदोलन का रुख तय करना है. यह पहली बात है और दूसरी बात हमने कभी भी पीस प्रोसेस की खिलाफत नही की । डमोक्रेटिक सिस्टम और पीस प्रोसेस को लेकर हमरा साइंटिफिक एप्रोच था हमने कभी भी इससे इंकार नहीं किया था। हम शुरु से ही तैयार थे कि यदि परिस्थिति बनता है तो लोगों को, नेपाली जनता को ,उनके बारे में, संविधान के बारे में फैसला करने की अनुमति दिया जाए तो हम पीस प्रोसेस में आ जायेंगे। शुरु से ही हम कहते रहते थे.इसके लिए हमने पांच साल तक हमने बहुत बड़ा डिबेट और डिस्कशन, पार्टी के अंदर किया. आज की तारीख में दुनिया की स्थिति क्या है और क्रांति और प्रतिक्रांति की स्थिति क्या है। हमें नेपाली जनता के लिए और नेपाल राष्ट्र के लिए कैसे आगे जाना चाहिए, इसके बारे में बहुत बड़ा डिबेट हुआ.और तब जाकर हम वहां से टैक्टिकल और सीरिज आंफ टैक्टिक्स को हमने डेवलप किया, साथ ही साथ मल्टी पार्टी कंपीटिशन करके ही हमको आगे जाना चाहिए,यह भी तय किया। आज की तारीख में माओवाद के टेडिशनल तरीके से जाना, सत्ता हासिल करना संभव नहीं है. इस निष्कर्ष पर हम पहुंचे.

आप यह कहना चाहते हैं कि खासतौर पर हम भारत की बात करें तो भारत में जिस तरह से आंदोलन चल रहा है वह ट्रेडिशनल मूवमेंट है और उनको टैक्टिकली चेंज करने की जरूरत है ?

नहीं मैं यहां से किसी को ऐसा करना चाहिए या ऐसा नहीं करना चाहिए कहकर उपदेश देना नहीं चाहता हूं. कयोंकि मार्कसवाद के बारे में हमारी फंडामेंटल समझ है किसी भी देश की जनता को अपने देश में कैसे रहना है यह उनको खुद तय करना होगा, किसी को उसमें हस्तक्षेप करने की जरूरत नहीं है.

वहां के लोगों को ही फैसला करना है, यह उनको तय करना चाहिए. फिर भी हम इंटरनेस्नलिस्ट भी हैं इसलिए आइडियांलांजिकली प्रश्न में हमार डिबेट इंटरनेशनल लेवल पर चलता रहता है. इंडिया के कम्युनिस्ट के मूवमेंट के समय में एमसीसी था, पीडब्लूजी और बहुत सारे छोटे-बड़े कम्युनिस्ट ग्रूप थे। उस समय पीडब्लूजी और एमसीसी के बीच जो लड़ाई चलता था वो हमको बहुत अच्छा नहीं लगता था. इसलिए उनलोगों के साथ जिनके साथ हमारी बातचीत होती थी तो हम कहते थे कि इस तरह से तो नहीं होने वाला है ।हम आगे नहीं जा सकते हैं. जिसका बेसिक और फंडामेंटल एक ही आइडियोलांजी है, स्ट्रेटजी हैं, उनको तो एक साथ रहने की जरूरत है.और इसिलिए हमने एमसीसी और पीडबल्यूजी को एक करने के लिए काम भी किया।

हमने नेपाल में बहुत छोटे समय में ही बहुत आगे चले गए उसके पीछे एकीकरण प्रमुख कारण था। नेपाल के बहुत सारे कम्युनिस्ट ग्रुप को जो एक ही आइडियोलाजिस्ट ग्रुप के थे उनसब को हमने एक कर लिया था।

मैं यह पुछना चाह रहा हूं कि प्रचंड महज एक व्यक्ति ही नहीं बल्कि एक स्कूल आंफ थांट भी है ।यदि बृहत मायने में देखें तो वह स्कूल क्या कहना चाहेगा,भारत में माओवादियों के मौजूदा स्थिति के बारे में?

जब पीपुल्स वार में थे तो युनिटी बनाने के लिए भारत के माओवादियों के साथ हमारी तरफ से भी बहुत बातचीत होती थी, लेकिन आज की तारीख में क्योंकि हम हमारे देश की परिस्थितियों के मुताबिक,हमारी जनता की आव’यकताओं के मुताबिक पीस प्रोसेस में आगे आ गए हैं। हम मल्टी पार्टी कंपीटिशन में आ गए हैं. हमने राजशाही को खत्म कर दिया है और राजतंत्र का अंत होकर गणतंत्र की घोषणा होना भी बहुत बड़ी बात हैं,इसलिए भारत के माओवादियों को सीधे तौर पर कुछ कहगने की स्थिति में नही है। आज मार्जिनलाइज पीपुल के अधिकार के बारे में नेपाल में कंसटीट्युशनल असेंबली में बहुत बड़ा डिबेट हो रहा है यह भी बहुत बड़ी उपलब्धि है. हम एक स्कूल आफ थांट को आगे ले जा रहे हैं। इसलिए भारत सहित दुनिया के सारे कम्युनिस्ट को यही कहना चाहते हैं कि यदि हमारे अनुभव में यदि कोई सकारात्मक चीज आपको दिखता है तो आप हमारे थांट ले सकते हैं।

आप यह कहना चाह रहे है कि आपकी राह यानी प्रचंडपथ पकड़ के आगे बढ़ना चाहिए?

वैसे तो हमारा एक्जाम्पल बन ही गया है। क्योंकि पहली रिपब्लिकन गर्वनमेंट का मैं पहला प्राइम मिनिस्टर बन गया हूं. पूरे विश्व को ही आश्चर्य हुआ। इसलिए एक तरह से यह उदाहरण तो है ही. हमारे रास्ते से राजतंत्र तो खत्म हुआ ही जो दस साल से लड़ रहे थे वही मेजारिटी में आ गए. अपने आप में यह एक उदाहरण है। लेकिन इसके लिए जैसे कभी कभी इंडिया में कोई घटना होता है, भारत में जब राज्य की तरफ से कोई हत्या होती है कोई दमन होता है तो हम कहते हैं कि दमन के तरीके से समस्या का समाधान नहीं हो सकता। बल्कि वहां की जनता की भावनाओं को मुखरित करके उसे संबोधित करने की कोशिश करना चाहिए इस काम में राज्य को ज्यादा इनिशिएटिव लेने की जरूरत भी है. राज्य को ज्यादा रिस्पांसिबल होने की जरूरत है. वहां की जो गरीब लोग है,किसान हैं, मजदूर है जो मार्जिनलाइज पीपुल हैं उसकी आवाज को ध्यान में रखकर एजेंडा को एड्रेस करने के लिए इमानदार प्रयास होना चाहिए, जेनुइन प्रयास हो तो मुझे लगता है कि शांति प्रक्रिया की स्थिति बन भी सकती है. लेकिन मल्टी पार्टी कंपीटिशन को तो स्वीकारना ही पड़ेगा और पीस प्रोसेस को स्वीकारना ही पड़ेगा. मुझे जहां तक मालूम है कुछ जल्द, कुछ दिन पहले और कुछ दिन बाद इस तरह की परिस्थिति बन जाएगी।

भारत में आपका काफी दिनों रहना हुआ है लेकिन आपका छत्तीसगढ़ भी आना हुआ है कैसा अनुभव है छत्तीसगढ़ को लेकर और कैसे वहां आना हुआ था। वहां के आंदोलन के बारे में आप क्या कहेंगे?

वैसे तो इडिया के बहुत सारे प्रांत में हम गए हैं, रहे भी हैं । साउथ से लेकर नार्थ तक, ईस्ट से लेकर वेस्ट तक. छत्तीसगढ़ के बस्तर इलाके में भी एक बार मैं पहुंचा हूं वहां के लोगों के साथ भी हमारी बातचीत हुई है वहां के कुछ लीडर्स से भी और कुछ बुद्धिजीवी से भी मेरी लंबी बातचीत हुई है|

कैसा अनुभव रहा छत्तीसगढ़ का और वहां की जो परिस्थिति है उसे किस तरह से देखते है?

देखिए इंडिया और नेपाल की जो स्थिति है भगौलिक, सांस्कृतिक, ऐतिहासिक हर दृष्टि से यह दुनिया के किसी भी देश से मिलता जुलता नहीं है. यह युनिक भी है, यही इसकी विशेषता भी है और इसी से प्राब्लम भी बनता है। नेपाल और इंडिया की जो परिस्थिति है वह दुनिया के किसी और देश से मिलता जुलता नहीं है भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बहुत से नेपाली लोगों ने भाग लिया है, जेल गये है और शहीद हुए । इसी तरह नेपाल के मूवमेंट में भी भारत के लोगों का बहुत बड़ा योगदान रहा है. इसलिए हम जनरल पालिटिकल मूवमेंट मे हम साथ साथ हैं. और कम्युनिस्ट मूवमेंट के दृष्टिकोण से भी हमारी पार्टी का गठन कलकता में ही हुआ था। लिहाजा भारत के माओवादी आंदोलन से हमारा गहरा रिश्ता है और हम छत्तीसगढ़ सहित पूरे देश के आंदोलन से जुड़े रहे है। अच्छा अनुभव रहा है।

फिर क्यों कहा जाता है कि प्रचंड के दृष्टिकोण में भारत नेपाल के दुश्मन की तरह नजर आता है?

यही तो सबसे बड़ी दुख की बात है। मैंने कभी भी भारतीय जनता के साथ दुश्मनी की बात कभी भी नहीं की है. भारत और नेपाल के बीच अच्छा संबंध होना जरूरी है हम जब इंसर्जेंसी में तो उस समय भी हम यही चाहते थे। क्योंकि भारत के बहुत सारे प्रांत में बहुत सारे नेताओं और बुद्धिजीवियों के साथ हमारा इंट्रैक्शन है अगर वो इंट्रैक्नशन नहीं हो पाता तो मुझे नहीं लगता कि हम इतनी आसानी से यहां सफल हो पाते।दस साल के बहुत छोटे समय में हम जहां हैं वहां बिना भारतीय बुद्धिजीवी ,भारतीय पार्टी, भारतीय नेताओं के साथ के, भारतीय क्रांतिकारियों के साथ के पहुंचना संभव नहीं था. हम कहना चाहेंगे कि जब हम अंडर ग्राउंड थे तो दस साल के अंदर ज्यादातर साल हम इंडिया में ही गुजारे।बंबई से लेकर कोलकाता, सिलिगुड़ी से लेकर दिल्ली, पंजाब से लेकर सभी जगह हम रहे हैं और जहां भी हम रहे हैं, भारतीय जनता का इतना प्यार मिला कि हम कह नही सकते। हां पहले -पहले हमें लगता था कि भारत के बारे में क्या होगा। ऐसा एक मनोविज्ञान था. लेकिन भारत में रहने के दौरान भारतीयों के साथ प्रेम का संबंध हो गया और पार्टी में भी हमने कहा कि हम भारतीय जनता के साथ मिलकर ही आगे जा सकते हैं और यदि आप इतिहास में देखेंगे तो भी साम्राज्यवाद के खिलाफ हम साथ-साथ लड़े हैं तो आज भी किसी निरंकुश तंत्र के खिलाफ भारत और नेपाल को मिलकर ही आगे जाना चाहिए।

नेपाल की तरफ लौटते हैं माओवादी सरकार की स्थापना से नेपाल को क्या मिला। माओवादी सरकार की क्या उपलब्धियां हैं?

माओवादी सरकार के बनने से अभी बहुत ज्यादा लाभ तो नहीं हुआ। हां जो राजनीतिक परिवर्तन हुआ, उसे बहुत बड़ी उपलब्धि कह सकते है। 240 साल से चल रही राज’ााही समाप्त हुई. नेपाल में धर्मनिरपेक्षता की स्थापना हुई. नेपाल में हिंदु परंपरावादी बहुत बड़ी समस्या थी। राज्य का धर्मनिरपेक्ष हो जाना माओवादी सरकार की बहुत बड़ी उपलब्धि है. नेपाल में बहुत अधिक विविधता है नेपाल मंे क्षेत्रीय, सांस्कृतिक, भा’ााई विविधता है। इसके बावजूद सभी को यहां पर सुंदर तरीके से प्रतिनिधित्व दिया गया है। यह बहुत बड़ी उपलब्धि है। नेपाल में माओवादी पार्टी जब सत्ता में आया तो इसको संस्थागत करने के सिवा कोई और रास्ता नहीं है। अभी हम संक्रमण के दौर से गुजर रहे हैं. अभी सबसे बड़ी जरूरत’ाांति प्रक्रिया को सम्मानजनक तरीके से संपन्न करने की है। उसके सार तत्व कोे संविधान में स्थान देकर एक नया संविधान बनाना होगा। मैं जब प्रधानमंत्री था तो मैंने परंपरागत संस्थाओं में बदलाव लाने का प्रयास किया. काफी विवाद भी हुआ उसी के चलते मुझे प्रधानमंत्री पद भी त्यागना पड़ा. फिर भी मुझे इसमें कोई दुख नहीं है.

सबसे महत्वपूर्ण मसला नेपाल के आर्थिक विकास का है। राज्य में चौहद घंटे लोड शेडिंग। आधारभूत संरचनाओं का अभाव। आखिर दूसरे देशों पर निर्भरता के साथ कैसे आगे बढ़ेगा नेपाल?

देखिए पांलिटिक्स और इकोनांमिक्स में प्रत्यक्ष संबंध रहता है। जब तक राजनीतिक स्थिरता नही होता तो इकोनांमिक डेवलपमेंट के लिए भी अच्छा वातावरण नहीं रहता और जब तक इकोनांमिक स्टैबिलिटी नहीं होता तो पांलिटिकल स्थिरता हासिल करना भी मुश्किल होता है. आज के डेट में हम पालिटिकल स्थिरता लाने के करीब पहुंच रहे हैं. एक बार यह स्थिरता हो गया तो हमारा पूरा फोकस इकोनांमिक डेवलपमेंट की तरफ होगा. इकोनांमिक डेवलपमेंट करने की यहां प्रचुर संभावना है. नेचर ने जो हमें दिया है, बहुत सारा दिया है, लेकिन उसको हमने सही तरीके से मैनेज नहीं किया है जैसा कि आपने कहा कि हाइड्रो पोटैंशियल की बात करें तो भारत और नेपाल मिलकर उसको क्वालिटीटेटिव रूप से बहुत आगे बढ़ा सकते हैं। दोनों देशों की जनता को हम बहुत आगे ले जा सकते हैं. नेपाल माउंटेनियल कंट्री और हिमालयन कंट्री होने के नाते टूरिज्म में इतनी संभावना है कि कुछ साल में ही हम उसको भी बहुत आगे ले जा सकते हैं. बाकी इंडस्ट्रियल डेवलपमेंट. इंफ्रास्ट्रक्चरल डेवलपमेंट में कुछ तरक्की करें तो हम बहुत आगे जा सकते हैं. इंडिया और चाइना के साथ जो हमारे बेहतर संबध है और जिस तरह से दोनो देश तरक्की कर रहे हैं उनसे हम बेनिफिट लेना चाहते हैं.

नेपाल में भ्रष्ट्राचार एक बहुत बड़ा मुद्दा आज भी बना हुआ है। इसकी कुछ आंच आप तक भी पहुंचती है खासकर आपके आलीशान घर को लेकर। विपक्षी दल आपके उपर 25 हजार नेपाली जनता की हत्या का आरोप भी सीधे सीधे आपके सिर लगाते है?

बिल्कुल गलत बात है. 25 हजार तो संख्या है ही नहीं’. इंसर्जेंसी के समय 15 हजार लोगों की हत्या हुई. इसमें राज्य की तरफ से 11 हजार से ज्यादा हत्याएं हुई. जिसकी जिम्मेजारी विपक्ष को लेना चाहिए लेकिन वो जिम्मेदारी से भाग रहा है और प्रचंड के सर पर सभी हत्याओं को थोपने की कोशिश कर रहा है. जहां तक भष्ट्राचार का मामला है तो आज करप्शन एक इंटरनेशनल फिनोमिना बन गया है ग्लोबलाईजे’शन के साथ साथ करप्शन का भी ग्लोबलाईजेशन हो गया है. नेपाल में जो परिस्थिति है आप ने सही कहा कि करप्शन बहुत गंभीर रूप से बढ़ गया है. हम जल्द से जल्द पांलिटिकल ट्रांजिशन को समाप्त करके करप्शन को नियंत्रित करने के लिए कदम बढ़ायेंगे।

आप के उपर भी अरबों के महल खरीदने और कई आरोप लगे हैं?

मैं कहना नहीं चाहता था कि लेकिन जब आप बार बार कह रहे हैं तो मैं बता रहा हूं कि जब मैं पार्टी में आया तो मैं एक भाड़े के मकान में रहता था आज भी मैं भाडे़ के मकान में रहता हूं. लेकिन उसको लेकर इतना ज्यादा दुष्प्रचार किया जा रहा है कि अब मैं यह घर भी छोड़ दूंगा. नेपाल में जो यह परिवर्तन चल रहा है उससे कुछ लोग अच्छा महसूस नहीं कर रहे हैं, राजशाही से जुड़े लोग प्रचंड को बदनाम करने में लगे हुए हैं। उनको लगता है कि प्रचंड को बदनाम करके वे फिर से राजशाही वापस लाने में सफल हो सकेंगे। यह उनका सपना भर है।.

अगर ग्लोबल रूप में देखें तो जितनी भी माओवादी पार्टियां हैं उनपर भी ये आरोप लगता है कि माओवादी हजारो करोड़ रुपए की अवैध कमाई करते है और संसाधनों पर कब्जा कर रहे है। छत्तीसगढ़ और भारत में तो यह बड़े पैमाने पर हो रहा है?

यह भी एक पालिटिक्स है । पांलिटिकल इंटेंशन हैं, पालिटिकल टार्गेट है. मैं ऐसा नहीं कहता कि ऐसा नहीं है. दुनिया की सभी माओवादी पार्टियों में प्राब्लम नहीं हैं. कमियां भी है लेकिन मैं यह मानने को तैयार नही हूं कि माओवादी पार्टियों और नेताओं के पास बहुत धन है।जब हम वार में थे तब भी हमारे उपर बहुत सारे आरोप लगते थे सरकार की तरफ से प्रोपगैंडा वार किया जाता था लेकिन हक़ीकत एकदम अगल था हमलोगों को संसाधनों की काफी कमी से गुजरना पड़ता था|

मैं नहीं मानता हूं यह फेक प्रोपगंडा है|

माओवाद का भविष्य वैश्विक स्तर पर आप किस रूप में देखते हैं ?

पूरे विश्व में जो मार्क्सवाद, लेनिनवाद कहते हैं तो उसका भविष्य अच्छा है। जबतक दूनिया में अन्याय है,उत्पीड़न है,शोषण है,भेदभाव है तबतक मार्क्सवाद,लेकिनवाद आगे बढ़ता रहेगा|

क्योकि जबतक जनता का आंदोलन रहता है तब तक मार्क्सवाद निरंतर आगे बढ़ता रहता है. जहां तक माओवाद का सबाल है तो समय काल परिस्थियों के अनुसार और वैश्विक स्तर पर हुए परिवर्तन के मुताबिक उसमें परिवर्तन और विकसित करने की जरुरत है जो देश की आवश्यकताओं के मुताबित हो।

यानी अब सत्ता की चाबी सिर्फ बंदूक की नली से होकर नही निकलेगी|

यह एक बहुत बड़ा फिलासफिकल डिबेट है. आज की तारीख में हम दुनिया को देखते हैं तो आज दुनिया की कौन सी ताकत है जो बिना बंदूक के,बिना हिंसा के सत्ता में बनी हुई है। हम लोकतांत्रिक प्रक्रिया में है। संविधान बनाने की प्रक्रिया में है फिर भी अपने साथ सेना रखना चाहते है,पुलिस रखना चाहते है। तो यह तो एक बड़ा डिबेट का विषय है । लेकिन मैं समझता हूं कि जल्दी या फिर थोरे देर से पीस प्रोसेस में आना ही होगा।

प्रचंड के सपनों का नेपाल क्या है?

नेपाल को नेचर ने जो दिया है उसको सही तरीके से नेपाल की जनता की आवश्यकताओं और भावनाओं के अनुसार उपयोग करके जनता की बुनियादी जरुरतों को पूरा करे। संविधान निर्माण की प्रक्रिया पूरी हो और नेपाल दूनिया में एवरेस्ट की शिखर ती तरह चमके तो अच्छा होगा|

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