मेघालय में मातृसत्तात्मक समाज में शादी के बाद लड़कियों को नहीं
लडक़ों को अपना घर छोडऩा पड़ता है। शादी के बाद घर परिवार व बच्चों को
सम्भालने की जिम्मेदारी पति पर ही होती है। यहां का लिंगानुपात 1000
स्त्रियों पर 1000 पुरुष है जो कि दुनिया में आदर्श है
आज स्त्री समानता की बात हर ओर हो रही है। भारत में लड़कियों की स्थिति
संतोषजनक नहीं है। लड़कियों व महिलाओं के खिलाफ शोषण व अत्याचार की बातें
आए दिन सामने आती रहती हैं। लड़कियों की लगातार घटती संख्या पर पूरा देश
चिंतित है। अपने अडिय़ल फरमानों के लिए विख्यात खाप पंचायतें भी बेटियों
को बचाने में आगे आई हैं। मेघालय राज्य में तो लड़कियों की स्थिति सबसे
अलग और बेहतर है। मेघालय में लिंग अनुपात 1000 स्त्रियों पर 1000 पुरुष
है जो समूची दुनिया में एक आदर्श है। यहां मातृसत्तात्मक समाज है।
महिलाएं व लड़कियां इस राज्य में बेखौफ होकर कभी भी निकल सकती हैं। यहां
लड़कियों के पैदा होने पर उत्सव जैसा माहौल रहता है। यहां का समाज
लड़कियों को आजादी देने के मामले में भारत के अन्य राज्यों से कहीं आगे
है। जो स्थान देश के अन्य हिस्सों में पुरुषों का है वहीं रुतबा महिलाओं
को मेघालय में हासिल है।
प्रकृति की गोद में बसा मेघालय
तीन पहाडिय़ों की संस्कृति से मिलकर बना है। तीनों पहाडिय़ां गारो हिल्स,
खासी हिल्स एवं जयन्तिया हिल्स के नाम से हैं और प्रमुख जनजातियां इन्हीं
पहाडिय़ों के नाम से जानी जाती हैं। मेघालय में अधिकांश जनजातियों ने ईसाई
धर्म अपना लिया है। जगह-जगह चर्च बन गए हैं। आधुनिकता का असर यहां
साफ-साफ देखा जा सकता है। लेकिन परम्पराओं और रीतिरिवाजों पर आधुनिकता का
असर न के बराबर है।
स्त्री है परिवार की मुखिया
मेघालय राज्य खासतौर पर शिलांग में खासी जनजाति का प्रभाव है। मेघालय की
यह जनजाति स्त्री प्रधान है। परिवार की मुखिया स्त्री ही होती है और उसी
की जाति के नाम से वंश चलता है। नवजात को मां का नाम मिलता है जबकि पूरे
भारत में पिता का नाम संतान को दिया जाता है। हालांकि स्कूलों में एडमिशन
के समय अब मां का नाम भी अनिवार्य हो गया है।
पति को छोडऩा पड़ता है घर
मेघालय के समाज में स्त्री को अपना मायका नहीं छोडऩा पड़ता। पति अपना घर
छोड़ पत्नी के घर रहने आता है। उसे पत्नी के साथ ही पत्नी के घरवालों
यानी अपनी ससुराल के बनाये नियम कानून मानने पड़ते हैं। पति को यदि अपने
घर यानी मायके आना हो तो उसके लिए उसे पत्नी के साथ ही सास ससुर व सालों
की अनुमति लेनी पड़ती है।
पति पर है घर व बच्चों की जिम्मेदारी
इतना ही नहीं उसे नौकरी के साथ ही घर के काम आने चाहिए। घर का काम पति की
प्राथमिकता में सबसे ऊपर होता है। घर और बच्चे सम्भालना यहां के पुरुषों
की ही जिम्मेदारी है। मेघालय में व्यापार व नौकरी में ज्यादातर लड़कियां
व महिलाएं ही हैं। सास ससुर और सालों सालियों की सेवा भी पति के हिस्से
में आती है। शादी से पहले पुरुषों से इन सभी बातों पर हामी भरवा ली जाती
है तभी विवाह की रस्में आगे बढ़ती हैं। अगर पति किसी भी तरह से अक्षम है
या फिर वह घर की जिम्मेदारी निभा नहीं पाता है तो उसे घर से निकाल भी
दिया जाता है। नशा या किसी भी प्रकार से व्यसन करने पर पत्नी को अधिकार
है कि वह अपने पति को छोड़ सकती है और दूसरा जीवनसाथी चुन सकती है।
शादी में चलती है लडक़ी की मर्जी
मेघालय के समाज में एक विशेष बात यह कि शादी मां बाप अपनी मर्जी से
बिल्कुल भी नहीं कर सकते। यहां परम्परागत शादियों से ज्यादा प्रेम विवाह
होते हैं। कहा जाय तो यहां की परम्परा ही प्रेम विवाह है तो कोई गलत न
होगा। शादी में लडक़ी की मर्जी की अनदेखी की बात यहां सोची भी नहीं जा
सकती।
…तो करनी पड़ेगी सास से शादी
मेघालय के स्त्री प्रधान समाज के कुछ स्याह पक्ष भी हैं। अगर पुरुष के
ससुर की मृत्यु हो जाती है तो सास को उससे शादी करनी पड़ती है। पति के
सामने अजीब संकट तब आता है जब उसे मां समान सास से शादी करनी पड़ती है और
मां बेटी एक ही पुरुष की पत्नी बन जाती हैं। पैतृक सम्पत्ति पर अधिकार
महिलाओं का होता है। पति पत्नी में अगर झगड़ा हो जाए तो पति अपनी बहन के
घर जाता है। परित्याग किए गए पति को बहन के यहां शरण मिलती है।
दुराचार पीडि़त से होती है सहानुभूति
अगर दुराचार की शिकार लडक़ी बच्चे को जन्म देती है तो समाज उसे गलत नहीं
मानता। बिना शादी के मां बनना यहां अपराध नहीं माना जाता।
परिवार ऐसे बच्चे को भगवान का प्रसाद मान कर स्वीकार करते हैं। इस तरह के
सम्बन्धों पर मेघालय के समाज में व्यापक उदारता देखने को मिलती है। बिन
ब्याही माओं का भी मेघालय के स्त्री सत्तात्मक समाज में आदर है। यहां
महिलाओं के खिलाफ अत्याचार की घटनाएं न के बराबर हैं। दुराचार को यहां का
समाज सबसे जघन्य अपराध मानता है लेकिन इसके लिए लडक़ी को कटघरे में कभी
नहीं खड़ा करता बल्कि पीडि़त के पक्ष में खड़ा दिखाई देता है।