लखनऊ। अगर आप का मोबाइल खो जाए तो शायद मिलने की उम्मीद बहुत कम होती है कि इतनी बड़ी दुनिया में आपका मोबाइल कहां और कैसे मिलेगा। लेकिन लखनऊ की हाईटेक पुलिस ने इस शब्द को झूठा साबित कर दिखाया है। पुलिस आयुक्त की मीडिया सेल में तैनात सिपाही ने ईमानदारी पेश करते हुए एक मदरसे के शिक्षक के चेहरे पर ख़ुशी लाते हुए उनका खोया मोबाईल लौटकर पुलिस विभाग का मान बढ़ाने का काम किया है। सिपाही के सराहनीय कार्य ने पुलिस की छवि को जनता के बीच अपने विश्वास को मजबूत कर दिखाया है। जिस पुलिस की छवि को लेकर जनता कई बातें बिखेरती थी और उसकी आलोचना करती थी वो आज सिपाही के ईमानदारी भरे कार्य को देखते हुए पुलिस का सोशलमीडिया पर भी शुक्रिया अदा कर रही रही है।
तीन दिन की मशक्क्त के बाद सिपाही ने मालिक को खोज निकाला
जानकारी के अनुसार, शाहजहांपुर जिला के उदियापुर रौजा के रहने वाले नफीस पुत्र खुर्शीद अहमद उन्नाव के सोहरामऊ के भल्ला फार्म स्थित एक मदरसे में शिक्षक हैं। नफीस की माने तो वह बीती 16 मार्च को उन्नाव से लखनऊ के रास्ते अपने गांव जा रहे थे। कैसरबाग बस अड्डे पर उनका कीमती मोबाईलफोन गिर गया। वह बस में सवार होकर चले गए। जब उन्होंने मोबाईल फोन निकालने के लिए हाथ जेब की तरफ बढ़ाया तो जेब में मोबाईल ना पाकर वह सन्न रह गए। काफी तलाशने के बाद मोबाईल नहीं मिला। इस दौरान बस अड्डे पर मोबाईल पुलिस कमिश्नर की मीडिया सेल में तैनात आरक्षी जितेन्द्र सिंह को पड़ा हुआ मिल गया था। जितेंद्र ने बताया कि सेलफोन में लॉक लगा होने का कारण वह मोबाईल के नंबरों पर सम्पर्क नहीं कर पा रहे थे। जब नफीस ने फोन किया तो कॉल रिसीव करने के बाद जितेंद्र ने उन्हें मोबाईल सुरक्षित होने की जानकारी दी। सिपाही की ये बाते सुन नफीस ने चैन की सांस ली। हालांकि जितेंद्र ने मोबाईल को उसके मालिक तक पहुँचाने के लिए तीन दिन की कड़ी मशक्कत की। जब नफीस कमिश्नर के कैम्प कार्यालय पहुंचे और जितेंद्र से मिले तो सिपाही ने उनका कीमती फोन उन्हें लौटा दिया। खोया हुआ मोबाईलफोन वापस पाकर नफीस ने जितेंद समेत पूरी पुलिस टीम की सराहना की है। नफीस की माने तो सिपाही जितेंद्र का स्वाभाव देख वह गदगद थे। उन्होंने सोचा नहीं था कि उनका फोन वापस मिलेगा लेकिन सुरक्षित हाथों में फोन पहुँचने के चलते उनके ही नहीं बल्कि उनके परिवार के चेहरे पर भी ख़ुशी और पूरे परिवार ने लखनऊ पुलिस के कार्य को लेकर शुक्रिया कहा है।
इनपुट – सुधीर कुमार