चौधरी चरण सिंह व कर्पूरी ठाकुर से पीछे रह गए विवेकानन्द, सुभाष चन्द्र बोस औैर जेपी
कमलेश श्रीवास्तव
उत्तर प्रदेश की राजनीति के आकाश पर इन दिनों छाये हैं सरकारी अवकाश। राजनीति की जादूगरी में पलक झपकते ही कोई गायब तो कोई प्रगट हो जाता है। पद और कद इतनी तेजी से घटते बढ़ते हैं कि कम्प्यूटर भी मात खा जाए। देश के लिए अपना सबकुछ न्यौछावर करने वाले नेता जी सुभाष चन्द्र बोस राजनीति में नेताओं से कहीं पीछे छूट गए हैं। 24 जनवरी को प्रदेश सरकार ने बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री स्व. कर्पूरी ठाकुर के जन्मदिन पर सार्वजनिक अवकाश का ऐलान किया है वहीं एक दिन पहले यानी 23 जनवरी को होने वाली नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की जयंती पर कोई अवकाश नहीं होता।
नेता जी सुभाष चन्द्र बोस की अनदेखी पर यदि यकीन न आये तो कभी राजधानी स्थित परिवर्तन चौक से गुजरिए। हजरतगंज के करीब स्थित परिवर्तन चौक से परिवर्तन की ऐसी बयार बही कि नेताजी सुभाष चन्द्र बोस से कांशीराम अचानक ही बड़े हो गए। वोट बैंक के बैरोमीटर पर राममनोहर लोहिया से आगे निकल गए चौधरी चरण सिंह तो अचानक लोकनायक जयप्रकाश नारायण के कद को लांघ कर्पूरी ठाकुर आगे बढ़ गए। युवाओं के सर्वकालिक आदर्श रहे विवेकान्द ने दुनिया जीती हो या जीरो को हीरो बनाया हो पर प्रदेश के युवा मुख्यमंत्री के आदर्श नहीं रहे। अगर होते तो 12 जनवरी को स्वामी विवेकानन्द जयंती पर सार्वजनिक अवकाश जरूर होता। यह अलग बात है कि विवेकानन्द की जयंती पर 12 जनवरी कोई सार्वजनिक अवकाश भले न हो लेकिन युवा तुर्क कहे जाने वाले पूर्व प्रधानमंत्री स्व.चन्द्रशेखर पर सार्वजनिक अवकाश की पूरी तैयारी है।
कहने वाले तो यहां तक कह रहे हैं कि लालू यादव और मुलायम सिंह यादव की रिश्तेदारी से स्व. कर्पूरी ठाकुर का नाम अचानक सामने आया है। अभी कुछ ही दिन पहले राजनीतिक अवसरवादिता की मिसाल रहे पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह सार्वजनिक अवकाश के हकदार बने लेकिन अन्य कोई प्रधानमंत्री ऐसा सौभाग्य नहीं पा सका। पूर्व प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन दो अक्टूबर को गांधी जयंती के दिन पड़ता है इसलिए उनके जन्मदिन पर स्वत:सार्वजनिक अवकाश होता है। अगर लाल बहादुर शास्त्री का जन्मदिन दो अक्टूबर के दिन न पड़ता तो वह भी सार्वजनिक अवकाश के सम्मान के दायरे में नहीं आ पाते। शास्त्री जी तो गांधी जी के साथ किसी तरह एडजस्ट हो गए पर अन्य प्रधानमंत्री चाहे वह जवाहरलाल नेहरू या हों या फिर इंदिरा गांधी सार्वजनिक अवकाश का सम्मान नहीं पा सके।
वोटबैंक की राजनीति और जातीय जंगल में लोहिया के आदर्श गुम हो गए तो बिहार से कोई नाम आया तो वह भी सिर्फ कर्पूरी ठाकुर का। देश के पहले राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के नाम पर भी कोई सार्वजनिक अवकाश नहीं होता। सम्पूर्ण क्रांति के लोकनायक जयप्रकाश के नाम पर भी सार्वजनिक अवकाश नहीं है। यह दोनों नेता आज के राजनीतिक दलों के वोटबैंक के खांचे में फिट नहीं बैठते। जयप्रकाश नारायण की सम्पूर्ण क्रांति से उपजे नेताओं को भले ही सार्वजनिक अवकाश का सम्मान दिया जा रहा हो पर लोकनायक की उपेक्षा नए जनता दल परिवार के लिए भारी पड़ सकती है। नेताजी सुभाषचन्द्र बोस को मोदी सरकार भारत रत्न दिलाने में कामयाब नहीं रही लेकिन प्रदेश सरकार के पास मौका था कि वह नेताजी सुभाष चन्द्र बोस के नाम पर सार्वजनिक अवकाश कर मोदी सरकार से एक कदम आगे बढ़ सकती थी। लेकिन ऐसा हो न सका। स्वामी विवेकानन्द और नेताजी सुभाष चन्द्र बोस की अनदेखी कर स्व. चौधरी चरण सिंह व कर्पूरी ठाकुर को सार्वजनिक अवकाश का सम्मान देना जनता ध्यान से देख रही है। माना कि लडक़ों से गलतियां हो जाती है लेकिन बड़ों की चूक को जनता हलके में नहीं लेती…सुन रहे ना नेता जी।