गर्मी में मसूरी व नैनीताल घूमने का मजा ही कुछ और है

ब्लर्ब: मौसम ने तेवर दिखाने शुरू कर दिए हैं। बच्चों की गर्मी की छुट्टिïयां भी शुरू हो चुकी हैं। ऐसे अधिकतर लोग हिल स्टेशन जाने का प्रोग्राम बनाते हैं। जाड़ा हो या गर्मी हिल स्टेशन सैलानियों को हर मौसम में लुभाते हैं। अगर आपके मन में भी हिल स्टेशन जाने का इरादा हो तो मसूरी व नैनीताल जरूर जाइएगा। यहां जाने के बाद आपका लौटने का दिल भी नहीं चाहेगा|

संतोषी दास

पहाड़, बर्फ और हरियाली यह तीन शब्द गर्मी में भी ठंडक का अहसास देते हैं। हिल स्टेशन के नाम भर से मेरी आंखों में उस ट्रिप के नजारे घूमने लग जाते हैं। पेशे से मैं एक पत्रकार हूं। रोज की भागमभाग भरी जिंदगी में कहीं घूमने का मौका ही नहीं मिलता। मुझे अच्छे से याद है बड़ी मुश्किल से मई के आखिरी सप्ताह में छुट्टिïयां मिली थी। फिर क्या मैंने दिमाग के घोड़े दौड़ाने शुरू किए और वह जाकर हरिद्वार पर जा रुके। मैं अपनी छुट्टियों को लखनऊ की गलियों में बर्बाद नहीं कर चाहती थी। मस्का लगाया, गुस्सा दिखाया और आखिरकार मम्मी, भाई को हरिद्वार चलने के लिए राजी कर लिया। झटपट योजना बनी और हम हरिद्वार पहुंच गए। हरिद्वार में मनसा देवी और चण्डी देवी के दर्शन किए। वहां पहुंचने पर हमारा ऋषिकेश जाने का प्लान बन गया। उसी दिन हम तीनों की टोली निकल पड़ी ऋषिकेश के लिए। वहां सबसे पहले हम लक्ष्मण झूला देखने पहुंचे। कलकल बहती नदी और तट कि खूबसूरत मंजर ने हमारे कदमों को वहीं ठिठका दिया। मां को कुछ ठंड लग रही तो हमने घाट पर ही चाय की चुस्कियों का आनंद लिया। काफी देर घूमने के बाद हमारा कारवां देहरादून की ओर बढ़ चला। ऋषिकेश से देहरादून का सफर तय करने में हमें रात हो गई थी इसलिए स्टेशन के करीब ही एक होटल में कमरा लिया गया। हम सुबह-सुबह ही शहर घूमने निकल पड़े। पर्यटन स्थलों की जानकारी हमें होटल से ही मिल गई थी। होटल से हमने सहस्रधारा के लिए बस ली। वहां पहुंचने तक यह लग रहा था कि हम जहां जा रहे हैं वह कोई नदी होगी। मगर जैसे-जैसे हम उसके नजदीक पहुंचते गए मेरी सोच बदलती गई। हमारी बस ऊंचाई पर बसे शहर से नीचे की तरफ जा रही थी। हम देहरादून की तलहटी की ओर जा रहे थे। घुमावदार रास्तों का वह सफर यकीनन जबरदस्त था। हमें कभी डर लगता तो कभी मजा आता। पहाड़ की तलहटी में घूमना बेहद रोमांचक था। वहां गंधक के जल का कुंड है जहां गंधक युक्त पानी निकलता है। कहते हैं कि वह जल त्वचा में खुजली या फिर चर्म रोग के लिए रामबाण है। फिर क्या था मां ने पानी को बोतल में स्टोर करना शुरू कर दिया। कुछ देर घूमने के बाद हम वापस देहरादून की तरफ बढ़ चले। शाम हो रही थी पर हमें और घूूमना था। हम लोग देहरादून वापस पहुंच कर तिब्बत मार्केट गए। जहां जमकर खरीदारी की। उसके बाद हमारा काफिला सेंट्रल मार्केट पहुंचे जो काफी अच्छा था। साथ ही हमने वहां का घंटाघर भी देखा। होटल में खाना खाकर हम लोग निकल ही रहे थे कि कानों में मसूरी शब्द पड़ गया। मेरी आखों में चमक आ गई। मसूरी जाना अभी बाकी थी। सो अगले दिन मसूरी जाने का प्लान बन गया। देहरादून से वहां का रास्ता महज दो घंटे का ही है। पता चला कि स्टेशन के पास ही मसूरी के लिए सुबह 7 बजे बस मिलती है। मैं काफी रोमांचित थी। जिस जगह के बारे में किताबों में पढ़ा और सिर्फ सुना था आज मैं वहां जा रही थी। पूरे दिन की थकान के बाद हमें रात में मस्त नीद आई। सुबह जल्दी उठना था तो मां ने 6 बजे का अलार्म लगा दिया। थकान के चलते हम में से किसी को उसकी आवाज सुनाई ही नहीं दी। तभी अचानक मेरी आंख खुली देखा तो घड़ी में 6.30 हो रहा था। मैंने सबको जगाया और हम सब फटाफट तैयार होकर बस अड्डे की तरफ दौड़ पड़े। बस जाने को तैयार थी लगा मानो हमारा ही इंतजार कर रही थी। हमारे सवार होते ही बस चल पड़ी। अब हम देहरादून शहर के बीचोबीच से होते हुए बाहर की तरफ आ गए। दूर से मसूरी की पहाड़ी दिख रही थी। धीरे- धीरे हम देहरादून शहर से ऊपर की तरफ बढऩे लगे। हमारी बस जितने आगे बढ़ रही थी मसूरी की वादियां साफ होती नजर आ रही थीं। मैं पूरे रास्ते मैं खिडक़ी से बाहर ही झाकती रही। पहाड़ में घूमने का मेरा बचपन का ख्वाब अब सच हो रहा था।

फिल्मों में जिस नजारे को देखा था आज उसे मैं महसूस कर रही थी। कुछ घंटों का सफर तय करके हम लोग मसूरी बस स्टॉप पर पहुंच गए। वहां पहुंचने पर ऐसा लगा मानो हम स्वर्ग में हों। ऊपर से नीचे की घाटी का नजारा बेहद सुंदर था। देहरादून के मुकाबले मसूरी का तापमान कम था और हमें मसूरी जल्द से जल्द घूम कर उसी दिन शहर वापसी के लिए ट्रेन भी पकडऩी थी। हम लोग मसूरी की वादियों का नजारा ले ही रहे थे कि दूरबीन से मसूरी के सात प्वाइंट दिखाने वाले गाइड ने हमें घेर लिया। बोला, मैडम आपको पांच मिनट में मसूरी के सात प्वाइंट दिखाते हैं। मैं झट से तैयार हो गई। जैसे ही मैंने दूरबीन लगाकर बाएं देखा तो मुझे फिल्मी सितारे नजर आए। किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी वहां। फिर हम मसूरी के सबसे प्रमुख पर्यटन स्थल गन हिल टॉप गए। वहां पैदल और रोप वे दोनों ही तरीकों से जाया जा सकता है। पर हमने रोप वे का सहारा लिया। उडऩ खटोले में बैठकर देखे गए नजारों को शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। कुछ ही मिनटों में हम मसूरी की ऊंची चोटी गनहिल पहुंच गए। मैंने सोचा था गनहिल कोई तंग सी चोटी होगी पर मैं गलत थी ऊपर इतना बड़ा मैदान था कि वहां क्रिकेट खेल सकते थे। ऊपर पहुंचकर जब नीचे को देखा तो पता चला कि बादलों ने पूरी मसूरी के घेर लिया है और अभी थोड़ी देर में वह गन हिल को भी घेर लेंगे। गन हिल के दूसरी तरफ कुदरत का असली नजारा था। दूर तक फैले गढ़वाली पहाड़। ठंड बहुत थी और भूख भी जोरों की लग रही थी। पास ही में मोमो की स्टॉल देखकर मुझसे रहा नहीं गया और हमने ऑर्डर दे दिया। उन मोमोज़ का स्वाद आज भी ताजा है। कुछ समय वहां बिताने के बाद हम रोपवे से नीचे आए। इसके बाद हम कैम्पटी फॉॅल के लिए रवाना हो गए। कैम्पटी फॉल मसूरी की तलहटी पर था वहां जाने के लिए हमने बस ली। रास्ते भर हमें हिमालय की बर्फ से ढकी चोटियां दिखती रहीं। मैं उन सभी नजारों को कैमरे में कैद करते हुए चल रही थी। गढ़वाल टूरिज्म की बस ने हमें बीच-बीच में कई मंदिरों के दर्शन भी कराए। वहां पहुंचे तो लगा कि वहां का तापमान काफी कम हो गया है। सर्दी के मौसम के बाद भी मैं अपने को पानी में पैर डालने से नहीं रोक पाई। बर्फीले पानी में खड़े होकर पानी में खेलने का मजा ही कुछ और था। सुना था कैम्पटी फॉल जाकर वहां की चाय और मैगी जरूर खानी चाहिए पर अफसोस मैं चूक गई। काफी मौज मस्ती करने के बाद अब समय आ गया था कि वापस मसूरी जाने का। मसूरी पहुंचते-पहुंचते शाम हो गई थी। ढलते हुए सूरज ने मसूरी को अपनी लालिमा से प्रकाशित कर रखा था। यह नजारा भी बेहद खूबसूरत था। हमने कुछ देर मसूरी के मॉल रोड पर चहल कदमी, खरीददारी की इसके बाद हम बस अड्डे पहुंच गए जहां से हमें देहरादून वापस होटल पहुंचना था। रात को बस से नीचे उतरते समय मसूरी का नजारा और भी सुंदर लग रहा था। पहाड़ों पर जगमग लाइटें दूर से ऐसे लग रहे थे जैसे तारों का कब्जा पहाड़ों पर हो गया हो। हमारी बस जैसे-जैसे नीचे जा रही थी वैसे-वैसे लाइटें धुंधली हो रही थीं। एक समय आया जब लाइटों ने जगमगाना छोड़ दिया|

मसूरी यात्रा के कुद दिनो बाद हमें नैनीताल जाने का अवसर भी मिला। नैनीताल का सफर मसूरी जैसा ही खूबसूरत था। बस फर्क इस बार यह था कि हमने गाड़ी बुक कराना बेहतर समझा। रास्ते भर हमें सुंदर नजारे देखने को मिले। रास्ते में एक अंधा भी मिला जो आने जाने वालों को समय भी बताता है। यह बात सुनने में अटपटी जरूर है पर उस अंधे से मैंने समय पूछा तो उसने बिल्कुल सटीक समय बताया। वह व्यक्ति वहां आने वालों का आकर्षण का केन्द्र है। उससे समय पूछे बिना शायद ही कोई आगे बढ़ता हो। खैर, हम कुछ समय बाद तालों के शहर नैनीताल में पहुंच गए थे। नैनीताल झील में बोटिंग करने का मजा ही कुछ और है। पहाड़ों के बीच झील में कुछ समय बीता कर मन को काफी शांति मिली। शाम होते ही हमने गाड़ी बुक कराई और नैनीताल के साइड व्यू को देखने के लिए निकल पड़े। साइड व्यू में हमने सुसाइट प्वाइंट और लवर्स प्वाइंट देखा। लवर्स प्वाइंट सुनने में जितना अच्छा लग रहा था उतना अच्छा नहीं था, उससे इतर सुसाइड प्वाइंट ने हम घुमक्कड़ों का दिल जीत लिया। सुसाइड प्वाइंट पर रखे टीले पर हम दो सहेलियां जाकर खड़ी हो गईं जिसे देख बाकी दोस्त डर गए। कुछ देर सुसाइड प्वाइंट का आनंद लेने के बाद हम वापस उतर आए। अगले दिन हम भीमताल और अन्य ताल देखने पहुंचे। नैनीताल में वह सारे एडवेंचर करने को मिलें जिनको मैं करना चाहती थी जैसे रॉक क्लिबिंग, नदी के एक छोर से दूसरे छोर रस्सियों के सहारे जाना। हम चारों ने इन एडवेंचरस खेलों का लुत्फ उठाया। बोटिंग, वाटर गेम के दौरान हमने खूब धमाचौकड़ी की। इसके बाद हमने गुफा में घूमने का मजा उठाया। नैनीताल का टाइगर केव दूर दराज से आने वाले लोगों के आकर्षण का केन्द्र है। इसके बाद नैनादेवी मंदिर के दर्शन किए। जिन दिनों हमारी घुमक्कड़ी टोली नैनीताल गई थी उस समय नैना देवी महोत्सव चल रहा था तो हमने गढ़वाल और कुमांउनी कलाकारों के लोकनृत्य का भी मजा लिया। कलाकार तलवार ले कर पारम्परिक नृत्य कर रहे थे उन्हें देख हमने भी तलवार लेकर फोटो खिंचवाई। चार दिन के इस टूर में हमने नैनीताल की वादियों को जी भर कर निहारा। अगर इस गर्मी के मौसम में सूरज की तपिश से बचने के लिए आप कुछ समय के लिए किसी हिल स्टेशन जाने की सोच रहे हैं तो आपके लिए मसूरी और नैनीताल एक अच्छी जगह हो सकती है। नैनीताल में जहां आपको एडवेंचर के साथ प्राकृतिक नजारा भी मिलेगा तो वहीं मसूरी पहाड़ों की रानी की गोद में समय बीताना अपने आप में ही एक रोमांच है। तो अब आप देर न करें और जल्द से जल्द घूमने की योजना बना ही डालें|

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