मंच वही है जहां अप्रैल 2011 में अन्ना ने जनता के दिलों में भ्रष्टïाचार के खिलाफ आगे लगाई थी। दिल्ली का जंतर-मंतर जनता के लिए तीर्थ बन गया था। जून 2012 में वही मंच फिर सजा है पर अन्ना हजारे को छोड़ बाकी चेहरे बदले हैं। जहां हजारे ने पिछले आंदोलन में रामदेव से दूरी बनाई थी इस बार तो अघोषित रूप से पूरा मंच बाबा के हवाले कर दिया है। एक तरफ बाबा रामदेव तो दूसरी ओर हैं बैरागी अन्ना हजारे। बाबा और बैरागी मिलकर भ्रष्टïाचार व कालाधन के खिलाफ अलख जगा रहे हैं। बिखरती टीम अन्ना से सुस्त पड़े आंदोलन में बाबा रामदेव ने नई जान फूंकने की मुहिम में जुटे हैं। पहले लोकपाल और अब कालाधन के खिलाफ जनता को जागृत करने में टीम अन्ना पर अकेले बाबा रामदेव भारी पड़ रहे हैं। यह बाबा का चमत्कार ही है कि अब भाजपा अध्यक्ष गडकरी ने बाबा रामदेव के पैर छूकर ऐलान कर दिया है कि भाजपा रामदेव के साथ है। यह बात और है कि गडकरी का यह फैसला भाजपा के बड़े नेताओं को रास नहीं आया है। भाजपा हाईकमान इस बात से चिंतित है कि अगर जनता में यह संदेश चला गया कि अन्ना व रामदेव के आंदोलन के पीछे भाजपा है तो इससे पार्टी को नुकसान हो सकता है। भाजपा ने विपक्ष को बैठे बैठाए एक मुद्दा थमा दिया है। गडकरी अब सफाई देते घूम रहे हैं कि साधु महात्माओं के पैर छूना एक संस्कार है और कांग्रेस के नेता पहले से ही ऐसा करते आए हैं। यह तो सभी जानते हैं कि बाबा रामदेव से भाजपा के पुराने रिश्ते हैं। रामदेव वर्ष जून 2011 में रामलीला धरने पर बैठे थे तब कांग्रेस के नेताओं विशेषकर सुबोधकांत सहाय व कई मंत्रियों ने बाबा रामदेव को हाथोहाथ लिया था। लेकिन बाबा व सरकार में बात बिगड़ गई और रामलीला मैदान पर पुलिस के दखल के बाद बाबा को लड़कियों की वेशभूषा में भागना पड़ा था। बाबा रामदेव के आंदोलन में पुलिस के लाठीचार्ज पर भाजपा ने तीखी प्रतिक्रिया व्यक्त की थी। भाजपा की वरिष्ठï नेता और नेता विपक्ष सुषमा स्वराज ने महात्मा गांधी के समाधि स्थल पर नृत्य भी किया था। भाजपा बड़े नेताओं की चिंता इस बात को लेकर भी है कि अगर मंच पर से टीम अन्ना या रामदेव भ्रष्टïाचार के बहाने सरकार या मंत्रियों पर ज्यादा कीचड़ उछाला तो कुछ छींटे भाजपा पर भी पड़ेंगे। हालांकि रामदेव ने भाजपा की मंशा समझ एक चुतर नेता की तरह पहले ही स्पष्टï कर दिया है कि मंच पर से किसी नेता का नाम लेकर कुछ नहीं कहा जाएगा। रामदेव के इस फैसले पर नाराज टीम अन्ना के प्रमुख सदस्य अरविंद केजरीवाल मंच छोड़ कर चले गए। बताते चले जब रामदेव टीम अन्ना से जुड़े थे तब भी अरविंद केजरीवाल ने बाबा का भर बैठक में विरोध किया था। रामदेव को टीम अन्ना की सदस्य किरण बेदी लेकर आई थीं। बाबा रामदेव इस बार कोई चूक नहीं करना चाहते। वह अन्ना के साथ मंच साझा कर अपने आंदोलन को धार देना चाहते हैं। अन्ना को अपनी टीम बिखरने का पूरा अहसास है। वह यह भी अच्छी तरह से जानते हैं कि अगस्त 2011 के आंदोलन की पुनरावृत्ति अब आसान नहीं है। एक तरह से कहा जाए तो अन्ना ने बहुत ही सलीके से भ्रष्टïाचार विरोधी आंदोलन की बागडोर रामदेव को थमा दी है। टीम अन्ना में अन्ना के बाद कोई कार्यकर्ता आंदोलन को बहुत दूर तक नहीं ले जा सकता। सबकी अपनी अपनी महात्वकांक्षाएं हैं। केजरीवाल और किरण बेदी या प्रशांत भूषण अब आंदोलन के धारदार चेहरे नहीं रह गए हैं। केजरीवाल हमेशा से ही विवादास्पद बयान देकर चर्चा में रहने के लिए मेहनत करते नजर आते हैं तो किरण बेदी नौकरी के दिनों की भड़ास सरकार पर निकालने के लिए अकसर उतावली हो जाती हैं। अन्ना आंदोलन को सोशल नेटवर्किंग साइट्स के द्वारा करोड़ों लोगों तक पहुंचाने वाले शिवेन्द्र सिंह चौहान से केजरीवाल का छत्तीस का आंकड़ा जगजाहिर है। हजारे यह भी जानते हैं कि बाबा ने कालाधन देश में वापस लाने की बात कही है जिससे सरकार भी सहमत है। जिस तरह से अन्ना ने लोकपाल को लेकर अपने आंदोलन से पहले सोनिया समेत सभी राजनीतिक पार्टियों के नेताओं से मिल कर अपनी बात पहुंचाई थी ठीक उसी तरह से रामदेव ने भी नेताओ से मुलाकात करने का खाका खींचा है। रामदेव ने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से भी समय मांगा है। वर्ष 2011 में अन्ना आंदोलन के समय वह दौरा भी था जब आंदोलन के मंच पर किसी भी राजनीतिक हस्ती को आने की इजाजत नहीं थी यहां तक कि उमाभारती को भी आंदोलन से लौटा दिया गया था। इस बार नजारा बदला हुआ है। भाजपा अध्यक्ष गडकरी रामदेव के आगे नतमस्तक नजर आ रहे हैं तो बाबा भी किसी को नाराज नहीं करना चाहते। इस बाबा रामदेव की राह पहले जैसी मुश्किल नजर नहीं आ रही है। कालाधन मामले में किसी का नाम न लेना बाबा रामदेव की महज राजनीतिक चाल ही नहीं बल्कि अपने राजनीतिक सफर की शुरूआत है। इतना तो तय है कि बाबा भाजपा का साथ मिलने के बावजूद कांग्रेस को दुश्मन नहीं बनाना चाहते।