एजेंसी। मुंबई 27 नवंबर 1973 को यौन हमले के बाद कामा में चली गयी थीं मुंबई के केईएम अस्पताल में एक वार्ड ब्वॉय के यौन हमले के बाद 42 साल से कोमा में पड़ी पूर्व नर्स अरूणा शानबाग का आज निधन हो गया और एक दुष्कर्म पीडि़ता की अत्यंत पीड़ादाई यात्रा समाप्त हो गई जो भारत में इच्छामृत्यु पर बहस का चेहरा बन गई थी। इसके साथ ही मुंबई के किंग एडवर्ड मेमोरियल अस्पताल की साथी नर्सों द्वारा चार दशक तक निस्वार्थ भाव से की गई अरूणा की सेवा का भी अंत हो गया। इन नर्सों ने कभी उम्मीद नहीं छोड़ी थी और उच्चतम न्यायालय द्वारा परोक्ष इच्छामृत्यु (पैसिव यूथनेशिया) की अनुमति देने के फैसले के बावजूद उनकी सेवा की। 66 वर्षीय अरूणा को पिछले सप्ताह न्यूमोनिया के गंभीर संक्रमण के बाद परेल स्थित केईएम अस्पताल के आईसीयू में जीवनरक्षक प्रणाली पर रखा गया था। वह संक्रमण से उबर नहीं सकीं और आज सुबह उनका निधन हो गया। वह संभवत: सबसे अधिक समय तक कोमा में जीवित रहने वाली रोगी रहीं। बीमार लोगों को स्वस्थ करने के लिए नर्स के रूप में उनकी सेवा करने का अरूणा का सपना 27 नवंबर, 1973 को अधूरा रह गया जब वार्ड ब्वॉय सोहनलाल भरथा वाल्मीकि ने उन पर यौन हमला किया और कुत्ते को बांधने वाली जंजीर से उनका गला बांधा। गला घोंटे जाने के कारण उनके मस्तिष्क में ऑक्सीजन की आपूर्ति बाधित हो गई थी, वहीं रीढ़ की हड्डी भी बुरी तरह चोटिल हो गई थी और वह कोमा में चली गई। सोहनलाल को पकड़ा गया, दोषी ठहराया गया और सजा भी हुई। हमले और लूटपाट के लिए सात साल की दो सजाएं साथ साथ चलीं। लेकिन बलात्कार, यौन उत्पीडऩ या कथित अप्राकृतिक यौन हमले के लिए उसे सजा नहीं सुनाई गई। अरूणा पिछले चार दशक से अस्पताल के वार्ड नंबर चार से लगे एक छोटे से कक्ष में थीं। अस्पताल के कर्मचारियों और नर्सों के दिलों में भी वह हमेशा रहीं जिन्होंने 1980 के दशक में उन्हें वहां से निकालने की नगर निगम की कोशिश को नाकाम कर दिया। केईएम अस्पताल की नर्सें जहां अरूणा को जीवित रखने के लिए परिश्रम करती रहीं, वहीं पत्रकार पिंकी विरानी ने उच्चतम न्यायालय से गुहार लगाई कि अरूणा को इच्छामृत्यु की इजाजत देकर उनकी अनवरत पीड़ा से निजात दिलाई जाए। उच्चतम न्यायालय ने 24 जनवरी 2011 को अरूणा के स्वास्थ्य की जांच के लिए एक चिकित्सा पैनल गठित किया। समिति ने कहा कि अरूणा स्थाई रूप से कोमा के अधिकतर मानदंडों को पूरा करती हैं। उच्चतम न्यायालय ने सात मार्च 2011 को दया मृत्यु संबंधी याचिका खारिज कर दी। बहरहाल, शीर्ष अदालत ने स्थानीय कोमा की स्थिति में मरीज को जीवनरक्षक प्रणाली से हटाकर परोक्ष इच्छामृत्यु (पैसिव यूथनेशिया) की अनुमति दे दी। अदालत ने जहरीले पदार्थ का इंजेक्शन दे कर जीवन समाप्त करने के तरीके प्रत्यक्ष इच्छामृत्यु (एक्टिव यूथनेशिया) को सिरे से खारिज कर दिया। अरूणा को दयामृत्यु देने से इनकार करते हुए न्यायालय ने कुछ कड़े दिशानिर्देश तय किए जिनके तहत किसी उच्च न्यायालय की निगरानी वाली व्यवस्था के माध्यम से परोक्ष इच्छामृत्यु कानूनी रूप ले सकती है। उस दिन केईएम अस्पताल की नर्सों ने खुशी मनाई और अरूणा का पुनर्जन्म मानते हुए केक काटा। पिछले मंगलवार को अरूणा को आखिरी बार उनके कक्ष से बाहर निकाला गया, जब उनकी देखभाल कर रहीं नर्सों ने उन्हें कठिनाई से सांस लेते हुए देखा। इसके बाद वह उस कमरे में फिर नहीं लौटीं। पिंकी विरानी ने अरूणा की मौत की खबर पर अपनी प्रतिक्रिया में कहा आखिरकार इतने पीड़ादाई वर्षों के बाद अरूणा को न्याय मिला। उसे मुक्ति और शांति मिल गई। उन्होंने कहा जाते-जाते अरूणा भारत को महत्वपूर्ण पैसिव यूथनेशिया कानून दे गई। पिंकी ने 1998 में अपनी किताब ‘अरूणाज स्टोरीÓ में अरूणा की हृदय विदारक दास्तान लिखी है, वहीं दत्तकुमार देसाई ने 1994-95 में ‘कथा अरूणाचीÓ नामक मराठी नाटक लिखा, जिसे बाद में 2002 में विनय आप्टे के निर्देशन में मंचित किया गया। आज अरूणा के निधन की खबर फैलते ही शोक संदेश आने लगे। महाराष्ट्र के राज्यपाल सी विद्यासागर राव, मुख्यमंत्री देवेंद्र फडणवीस ने अरूणा के निधन पर शोक प्रकट किया। प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष अशोक चव्हाण ने भी शोक संवेदना प्रकट की। राज्यपाल ने शोक संदेश में कहा, अरूणा शानबाग के निधन की खबर अत्यंत पीड़ादाई है। ऐसा लगता है कि कोई परिवार का सदस्य चला गया हो। उन्होंने कहा, अरूणा शानबाग पर नृशंस तरीके से हमले की घटना पूरे समाज के लिए हृदय विदारक है जिसके चलते उन्हें इतने साल कोमा में गुजारने पड़े। उनकी आत्मा को शांति मिले। फडणवीस ने अरूणा की देखभाल करने वालीं केईएम अस्पताल की नर्सों की मानवीयता की तारीफ की।