नई दिल्ली। केंद्र सरकार ने मुस्लिम समुदाय में तीन तलाक की प्रथा का विरोध करते हुए कहा है कि 65 वर्षों से मुस्लिम समुदाय में सुधार न होने से महिलाओं को सामाजिक व आर्थिक रूप से कमजोर व असुरक्षित बना दिया है। जबकि केंद्र सरकार इस पक्ष में है कि सुप्रीम कोर्ट तीन तलाक और बहुविवाह के चलन को समाप्त कर दे।
सुप्रीम कोर्ट में दाखिल हलफनामे में केंद्र सरकार ने कहा कि तीन तलाक और बहुविवाह को धर्म का अहम हिस्सा नहीं करार दिया जा सकता हैं। कानून मंत्रालय द्वारा दाखिल इस हलफनामे में कहा है कि इस प्रकार की प्रथाओं की वैधता को समानता, सम्मान व अभेदभाव पूर्ण के सिद्धांतों के आलोक में सुप्रीम कोर्ट द्वारा पुन:परीक्षण की जरूरत है।
सरकार का कहना है कि ट्रिपल तलाक और बहुविहवार का महिलाओं की स्थिति पर बड़ा असर पर पड़ता है। संविधान केअनुच्छेद-25 के तहत तीन तलाक या बहुविवाह की छूट नहीं मिली है और न ही यह धर्म का महत्वपूर्ण हिस्सा है। केंद्र सरकार ने कहा कि कई मुस्लिम देशों ने इस मामले में सुधार लाया है लेकिन भारत जैसे धर्म निरपेक्ष देश में संविधान के तहत मिले अधिकारों से किसी को वंचित करने का कोई कारण नहीं बनता।
कई मुस्लिम देश जहां इस्लाम राज्य का धर्म है, वहां भी इसे लेकर सुधार किए गए हैं। साफ है कि ट्रिपल तलाक और बहुविवाह को धर्म का अभिन्न अंग नहीं कहा सकता। हलफनामे में ऐसे 10 देशों का जिक्र किया गया है।