इलाहाबाद हाईकोर्ट ने प्रदेश सरकार की पिछड़े वर्ग की अति पिछड़ी 17 जातियों को अनुसूचित जाति में परिभाषित कर सुविधाएं देने की अधिसूचना की वैधता के खिलाफ जनहित याचिका पर राज्य सरकार से एक माह में जवाब मांगा है। याचिका की अगली सुनवाई नौ फरवरी को होगी।
यह आदेश मुख्य न्यायाधीश डीबी भोसले तथा न्यायमूर्ति यशवंत वर्मा की खंडपीठ ने राजकुमार की याचिका पर दिया है। कोर्ट ने फिलहाल अधिसूचना के अमल पर रोक लगाने से इंकार कर दिया है। याची का कहना है कि संविधान के अनुच्छेद 341 के तहत किसी जाति को अनुसूचित जाति में शामिल करने का अधिकार केंद्र सरकार को है। राज्य सरकार को ऐसा अधिकार नहीं है। इसलिए राज्य सरकार के शासनादेश 22 दिसंबर 2016 व 31 दिसंबर 2016 की अधिसूचना को रद्द किया जाए तथा 17 जातियों को पिछड़े वर्ग में वापस किया जाए।
मालूम हो कि राज्य सरकार ने कहार, कश्यप, केवट, मल्लाह, निषाद, कुम्हार, प्रजापति, धीवर, बिन्द, भर, राजभर, धीमर, बाधम, तुरहा, गोड़िया, माझी, मछवाह पिछड़ी जातियों को अनुसूचित जाति में परिभाषित करने की अधिसूचना जारी की है और केंद्र सरकार को संस्तुति की है। इस अधिसूचना से 17 जातियों को अनुसूचित जाति की सुविधाएं पाने का अधिकार दे दिया गया है। याची का कहना है कि यह अधिकार राज्य सरकार को अधिकार नहीं है। सरकार ने अधिकार क्षेत्र से बाहर जाकर अधिसूचना जारी की है जिसे रद्द किया जाए।
याचिका पर राज्य सरकार की तरफ से महाधिवक्ता विजय बहादुर सिंह, मुख्य स्थायी अधिवक्ता रमेश उपाध्याय ने पक्ष रखा।