अटल को नमन मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ, लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
मौत से ठन गई!
जूझने का मेरा इरादा न था,
मोड़ पर मिलेंगे इसका वादा न था,
रास्ता रोक कर वह खड़ी हो गई,
यों लगा ज़िन्दगी से बड़ी हो गई।
अपनी जीवटता से मौत को मात देते आ रहे अटल जी 16 अगस्त की शाम खामोश हो गये तो कानों में उनकी यह कविता गूंज रही थी। दिल्ली के स्मृति वन में एक महामानव जब दुनिया से विदा ले रहा था उसकी काया पंच तत्व में विलीन हो रही थी हर आंख नम थे और आसमान भी गमजदा था। दिल्ली की सडकों पर लाखों का जन सैलाब उमडा था और दुनिया भर में करोडो जोडीं डबडबाई आंखें अपने दिलों पर राज करने वाले नायक को अंतिम विदाई दे रही थी। वहां की फिजाओं में अटल के शब्द लोगों को दिलासा दे रहे थे कि मैं कहीं नहीं गया लौट कर आऊंगा।
मौत की उमर क्या है? दो पल भी नहीं,
ज़िन्दगी सिलसिला, आज कल की नहीं।
मैं जी भर जिया, मैं मन से मरूँ,
लौटकर आऊँगा, कूच से क्यों डरूँ?
25 दिसंबर 1924 ग्वालियर की शिंदे की छावनी में एक साधारण परिवार में एक बालक का जन्म हुआ जो आगे चलकर देश का प्रधानमंत्री बना। अटल जी के दिल में बचपन से ही देश को आजाद कराने जज्बा था। 1942 के अंग्रेजों भारत छोड़ो आंदोलन आंच में तप रहे पुत्र पर आगरा में पुलिस की नजर पड़ी और उसे पकड़ लिया गया। उम्र कम होने के कारण अंग्रेजों ने उसे आगरा जेल की बच्चा बैरक में 24 दिन रखा लेकिन उसके जुनून को कम नहीं कर पाए। आगे की पढ़ाई के लिए वह कानपुर के डीएवी कॉलेज आए। अटल जी ने इसके बाद राजनीतिक विज्ञान में स्नातकोत्तर किया और पत्रकारिता में अपना करियर शुरु किया। उन्होंने राष्ट्र धर्म, पांचजन्य और वीर अर्जुन के सम्पादन का दायित्व सम्भाला। अटल बिहारी वाजपेयी ने 1951 में भारतीय जन संघ की स्थापना कर राजनीति की शुरूआत की। कुशल वक्ता के रूप में अटल ने समकालीन राजनेताओं व जनता में बहुत जल्द ही जगह बना ली। 1957 में जन संघ के टिकट पर वह बलरामपुर से चुनाव जीतकर दूसरी लोकसभा में पहुंचे। 1977 में जनता पार्टी सरकार में उन्हें विदेश मंत्री बनाया गया। इस दौरान संयुक्त राष्ट्र अधिवेशन में अटल जी ने हिंदी में भाषण देकर भारत का सम्मान बढ़ाया। 1980 में भारतीय जनता पार्टी की स्थापना हुई और वह 1986 तक इसके अध्यक्ष रहे । दूसरी लोकसभा से तेरहवीं लोकसभा तक अटल बिहारी वाजपेयी नौ बार लोकसभा के लिए चुने गए। 1962 से 1967 और 1986 में वो राज्यसभा के सदस्य भी रहे। राजनीति में व्यस्त रहने के बावजूद उनका कवि हृदय समय मिलने पर शब्दों की पोटली खोल कर बैठ जाता था।
टूटे हुए सपनों की कौन सुने सिसकी
अन्तर की चीर व्यथा पलकों पर ठिठकी
हार नहीं मानूंगा, रार नहीं ठानूंगा,
काल के कपाल पे लिखता मिटाता हूं
गीत नया गाता हूं
अटल जी तीन बार देश के प्रधानमंत्री रहे। वो सबसे पहले 1996 में 13 दिन के लिए प्रधानमंत्री बने और बहुमत साबित नहीं कर पाने के कारण उन्हें इस्तीफा देना पड़ा। वहीं, दूसरी बार 1998 में वो पीएम बने तब भी वो 13 महीने ही सरकार चला सके। अक्टूबर 1999 में वे तीसरी बार प्रधानमंत्री बने, इस बार उन्होंने अपना कार्यकाल पूरा किया। उनके नेतृत्व अटल बिहारी वाजपेयी के प्रधानमंत्री काल में 1998 में भारत ने पोखरण में परमाणु परीक्षण किया। इस परीक्षण के बाद दुनिया के शक्तिशाली देशों ने भारत पर आर्थिक प्रतिबंध भी लगाए। वाजपेयी के शासनकाल में ही मोबाइल सबकी जेब में आया। लखनऊ में वर्ष 2002 में बीएसएनएल मोबाइल की लांचिंग भी प्रधानमंत्री अटल ने ही की थी। देश के बड़े शहरों को सड़क मार्ग से जोड़ने की शुरूआत भी अटल जी के शासनकाल के दौरान हुई। 5846 किलोमीटर की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना को तब विश्व के सबसे लंबे राजमार्गों वाली परियोजना माना गया था। दिल्ली, कोलकाता, चेन्नई और मुम्बई को राजमार्ग से जोड़ा गया। उन्होंने गांवों को सड़क से जोड़ने का काम शुरू किया था। उन्हीं के शासनकाल के दौरान प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना की शुरूआत हुई थी। वहीं, कारगिल युद्ध में भारत की जीत का पूरा श्रेय प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी को जाता है। जब पाकिस्तानी घुसपैठियों ने 1999 में कारगिल क्षेत्र में घुसपैठ कर भारत के बड़े क्षेत्र पर कब्जा कर लिया था, जिसके बाद भारतीय सेना और वायुसेना ने कई दिनों तक चले इस युद्ध में पाकिस्तान को करारी हार झेलनी पड़ी।
पाकिस्तान को इससे पहले वो अपनी कविता से चेता चुके थे
अमरीकी शस्त्रों से अपनी आजादी को
दुनिया में कायम रख लोगे, यह मत समझो।
दस बीस अरब डालर लेकर आने वाली बरबादी से
तुम बच लोगे यह मत समझो।
धमकी, जिहाद के नारों से, हथियारों से
कश्मीर कभी हथिया लोगे यह मत समझो।
हमलो से, अत्याचारों से, संहारों से
भारत का शीष झुका लोगे यह मत समझो।
अटल जी एक ऐसे नेता थे जिनका सभी दलों समाज के सभी वर्गों में बेहद सम्मान था। जब वह सदन में बोलने के लिए खडे होते थे तो सभी बडे ध्यान से सुनते थे। अटल अपनों ही नहीं अपने विरोधियों के दिलों पर भी राज करते थे। देश ने उन्हें भारत रत्न से सम्मानित किया था। अटल जी को लखनऊ से बेहद प्यार था। वह उर्दू शायर की यह लाइनें कहते भी थे कि
लखनऊ हम पर फिदा
हम फिदा ए लखनऊ
जमाने की क्या हस्ती
जो हमसे छुडाये लखनऊ
आज अटल जी हमारे बीच नहीं है लेि कन उनकी विचारधारा हम सबके बीच अटल है। अपने शब्दों से वह हमेशा सबको साथ लेकर चलने व आगे बढने की प्रेरणा देते रहेंगे।
आहुति बाकी यज्ञ अधूरा
अपनों के विघ्नों ने घेरा
अंतिम जय का वज़्र बनाने-
नव दधीचि हड्डियां गलाएँ।
आओ फिर से दिया जलाएँ