लखनऊ में सब मंगल ही मंगल
जय बजरंग बली: गूंज उठी गली गली
लखनऊ देश दुनिया में अपनी तहजीब खान पान व परम्पराओं के कारण अलग पहचान रखता है। लेकिन गंगा जमुनी तहजीब की मिसाल बने इस शहर में जेठ के मंगल का उत्सव देखने लायक होता है। लगभग सभी धर्मग्रंथों में हनुमान जी का अवतार मंगलवार के दिन ही माना गया है शायद इसी कारण प्रत्येक वर्ष ज्येष्ठ माह के प्रथम मंगलवार को बड़ा मंगल के रूप में मनाया जाता है साथ ही पूरे ज्येष्ठ माह में जितने भी मंगलवार होते हैं उन्हें भी बड़े मंगल के नाम से ही जाना-पहचाना जाता है। आपको बताते चलें कि जेठ के मंगलों में छोटे बड़े सभी मंदिरों में हनुमान जी सुबह से लेकर देर रात तक पूर्जा अर्चना होती है। जेठ के हर मंगल को पूरे शहर में जगह जगह पर भंडारे का आयोजन होता है। क्या अमीर क्या गरीब सभी पंडाल में खड़े होकर भंडारे का प्रसाद ग्रहण करते हैं। पौराणिक मान्यता है कि लखनऊ भगवान श्री राम के भाई लक्ष्मण ने बसाया था और जेठ के मंगल यानी बड़े मंगल को उत्सव के रूप में मनाने की शुरूआत भी लक्ष्मण जी ने ही की। हालाकि इतिहासकार योगेश प्रवीन के मुताबिक, लखनऊ में बड़ा मंगल मनाने की परम्परा की शुरुआत 400 साल पहले मुगलशासक नवाब मोहम्मद अली शाह ने की थी। उस समय नवाब के बेटे की सेहत बहुत ज्यादा खराब हो गई थी। उनकी बेगम रूबिया ने अपने बेटे का कई जगह उपचार कराया, लेकिन वह ठीक नहीं हुआ। बेटे की सलामती की मन्नत मांगने वह अलीगंज के हनुमान मंदिर आईं।
-पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने को कहा। बेगम रात में बेटे को मंदिर में ही छोड़ गईं। दूसरे दिन रूबिया को बेटा पूरी तरह स्वस्थ मिला। तब उन्होंने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया। उनका लगाया प्रतीक चिन्ह चांदतारा आज भी मंदिर के गुंबद पर मौजूद है। -मुगल शासक ने उस समय ज्येष्ठ (जेठ) महीने में पड़ने वाले मंगल को पूरे नगर में गुड़धनिया (भुने हुए गेहूं में गुड़ मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद) बंटवाया। मंदिर के बाहर प्याऊ भी लगवाए। तभी से इस बड़े मंगल की परम्परा की नींव पड़ी।
लखनऊ में अलीगंज के हनुमान मंदिरों का ज्यादा महत्व है।