सुप्रीम कोर्ट ने एक फैसले में व्यवस्था दी है कि विधानसभा अध्यक्ष को विधायकों के इस्तीफे स्वीकार करने की शक्ति है और वह बिना जांच किए इन्हें स्वीकार कर सकता है। न्यायमूर्ति यू.यू. ललित, एस. रविंद्र भट और बेला एम. त्रिवेदी की पीठ ने यह फैसला भाजपा के तीन विधायकों की विशेष अनुमति याचिका पर दिया। फैसले में पीठ ने कहा कि अगर विधायक कह रहे हैं कि उन्होंने दबाव में या किसी डर के करण इस्तीफे दिए तो क्या उन्होंने इस बारे में किसी से कोई शिकायत की थी। विधायकों के वकील ने कहा कि यह डर ही था कि उन्हें त्याग-पत्र लिखने के बाद प्रेस वार्ता भी करनी पड़ी।
अदालत ने कहा कि जब कोई शिकायत नहीं की गई तो उसे दबाव में कैसे माना जा सकता है। हालांकि, प्रक्रिया और कार्य विनियमन के नियम 315 (3) और संविधान के अनुच्छेद 190 (3) (बी) के तहत स्पीकर यह जांच कर सकता है कि क्या विधायकों ने इस्तीफे वास्तव में और स्वेच्छा से दिए हैं। लेकिन यह जांच कैसे होगी, किस तरह से होगी, यह पूर्ण रूप से विधानसभा अध्यक्ष के विवेक पर छोड़ा गया है। यह कहते हुए अदालत ने नेताओं की याचिका खारिज कर दी।
भाजपा के विधायक टी. होइकिप, सेमुल जेंडाई और एस. सुभाष चंद्र सिंह ने मणिपुर विधानसभा अध्यक्ष को 17 जून 2020 को अपने-अपने इस्तीफे लिखकर भेज दिए थे। इस्तीफे उन्होंने स्वयं अपने हाथ से लिखे थे और इसके बाद उन्होंने प्रेस वार्ता करके इस बात की जानकारी सार्वजनिक भी कर दी। स्पीकर ने उसी दिन शाम को उनके इस्तीफे स्वीकार कर लिए और अगले दिन 18 जून को इस बारे में शासकीय गजट में अधिसूचना भी जारी कर दी गई।
विधायकों ने इस अधिसूचना को मणिपुर उच्च न्यायालय में चुनौती दी और कहा कि अध्यक्ष ने यह जांच नहीं करवाई कि इस्तीफे क्यों दिए गए। क्या इसके देने के पीछे कोई धमकी या दबाव तो नहीं था। लेकिन इंफाल उच्च न्यायालय ने 13 जुलाई 2021 को उनकी याचिका खारिज कर दी। उच्च न्यायालय ने कहा कि यदि इस्तीफे वास्तविक हैं और स्वैच्छिक हैं तो स्पीकर के उन्हें स्वीकार करने में कोई गलती नहीं है।

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.