समरीना:
उनकी दुनिया तो बच्चों में ही बसी है। रंग, उम्र, मज़हब से कहीं बहुत दूर बच्चों की किलकारियां उनकी धडकनें हैं। उनके हाथों को नवजात के स्पर्श की आदत है। काम से रिटायर हुए उन्हें भले ही दो साल हो गये हों लेकिन कोई भी पल ऐसा नहीं जो बच्चों से होकर गुजरा हो। आराम से कभी उनका नाता रहा ही नहीं। वे अब बच्चों की किलकारियों से दूर दर्द से कराह रहे मरीजों की दुनिया में जा बसी हैं। अखबार के रंगीन पन्नों और टीवी व नेट से कोसो दूर क्वीन मैरी अस्पताल से रिटायर सिस्टर बानो इस समय धरती के भगवानों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर केजीएमयू के ट्रामा सेंटर में मरीजों का दर्द समेटने में जुटी हैं।
थकान भी हार जाती हैं उनसे
कोरोना के खिलाफ पूरी दुनिया के डाक्टर व नर्स का पूरी ताकत से एक जुट होकर मरीजों को ठीक करने का जज्बा हम अब देख रहे हैं। लेकिन ये जज्बा हमेश से ही रहा है।किंग जॉर्ज मेडिकल यूनिवर्सिटी का ट्रामा सेंटर इस वक़्त किसी सरहद से कम नहीं। मरीज़ों का एक कारवां होता है यहाँ हर दिन। काम करने वालों के लिए दिमाग़ से जिस्म तक को पस्त कर देने वाली ड्यूटी पर हमने उन्हें चौबीसों घंटे मुस्तैद देखा है। इन्हे लोग सिस्टर बानो के नाम से बुलाते हैं। मरीज के तीमारदारों से पूछो तो वह एक सुर में यही कहते हैं कि यही तो हैं हमारी सच्ची वारियर और हमारी रौशनी भी। जिंदगी की जंग से लड रहे मरीजों के परिजनों के लिए बानो सहारा भी हैं और उम्मीद भी। वैसे सिस्टर बानो का असली नाम अर्जुमंद बानो है। इसी केजीएमयू के क्वीनमैरी अस्पताल से रिटायर हुए दो बरस बीत चुके हैं। मगर तजुर्बे, मोहब्बत और हिम्मत ने इन्हे रिटायर होने ही नहीं दिया। पिछले चार दशक से वक़्त पर ड्यूटी निभाने वाली सिस्टर बानो को जाड़ा गर्मी और बरसात के अलावा भी कोई अड़चन रोक न सकी। सारी उम्र क्वीनमेरी के एन एन यू डिपार्टमेंट में नवजात बच्चों के बीच बीती। बेशुमार रोते बिलखते बच्चे इन हाथों में आये और किलकारियां भरते गए। दुनिया के किसी न किसी हिस्से में मौजूद ये बच्चे आज अपनी दुनिया आबाद कर चुके होंगे। मगर सिस्टर बानो रिटायरमेंट के बाद आज भी अपनी मसीहा फितरत से ज़ख्मों पर फाहे रखने और दर्द को हरने का काम कर रही हैं।
औरों के लिए अब मिसाल बन चुकी हैं बानो
नौकरी पूरी हुई और रिटायरमेंट आया तो ये नहीं कि आराम का सोचतीं। रिटायरमेंट के बाद कुछ दिन भी घर पर न बैठा गया और इस बार मोर्चा संभाला सीधा ट्रामा सेंटर की ड्यूटी पर। अब सिस्टर बानो हैं उनकी ड्यूटी है और मरीज़ों का एक हुजूम। अपनी ड्यूटी पर आना उनका मक़सद है। इस वक़्त ये काम और भी सख्त है। कोरोना की महामारी है और उनसे टक्कर लेता फ्रंट लाइन पर मौजूद मेडिकल स्टाफ। जो हर हालात में अपनी ड्यूटी निभा रहा है।सिस्टर बानो को देख कर कोई भी कह सकता है कि एक लंबी ड्यूटी भी उन्हें थका नहीं सकी। ये माहौल उन्हें मशीनी नहीं बना पाया। यही वजह है कि अपने मरीज़ को देखना, उसे हिम्मत देना, प्यार से समझाना और ज़रूरत पड़ने पर डांटना उनके वो काम है जो किसी ड्यूटी लिस्ट में नहीं थमाए जाते। यहीं पर उन्हें एक कॉउन्सलर की ज़िम्मेदारी निभाते भी देखा। इन सबके अलावा बड़ी ही ख़ामोशी से किसी ज़रूरतमंद की ज़रूरत को पूरा कर देना भी उनकी ही आदत का हिस्सा दिखा। एक अदना से स्टाफ को उनसे बिलकुल बेधड़क अपनी मनवाते देखा तो एक डॉक्टर को बड़ी ही इज़्ज़त से उनसे बात करते पाया। सिस्टर बानो आज एक मिसाल हैं हम सबके लिए। एक ऐसी मिसाल जो वक़्त की ज़रूरत है इंसानियत को बचने के लिए। जिन्होंने अपने पेशे को वही ऊंचाइया दी हैं जिसके लिए उसे जाना जाता है और पेशे की इस ईमानदारी ने उन्हें रंग,नस्ल, मज़हब, या अमीरी गरीबी से कहीं ऊपर इंसानियत की सौग़ात दी है जो आने वाली नस्लों के लिए किसी सबक़ से कम नहीं।