आज सुबह उनके पुत्र और मेरे अभिन्न मित्र उत्तर प्रदेश सरकार में नगर विकास मंत्री आशुतोष टंडन का ये मैसेज जैसे सुबह लगभग सात बजे के करीब सोशल मीडिया पर गिरा वैसे ही मैं सन्न रह गया। आशुतोष जी हमारे मित्र हैं और हम उनके माध्यम से लगातार बाबू जी की सेहत की जानकारी लेते रहते थे। कोरोना काल में उन्होंने मुझे ही नहीं सभी मित्रों व शुभचिंतकों को अस्पताल न आने और खुद का ख्याल रखने की नसीहत दी थी। बाबू जी के बारे में तमाम किस्से प्रचलित थे। चाहे वो होली की मस्ती की बात हो या फिर चौक की चाट या ठंडाई की लालजी टंडन यानी बाबू जी से जो एक बार मिला वो फिर उन्ही का होकर रह गया। अकबरी गेट पर बाबू जी का अकसर मिल जाना और सबसे सहज ढंग से मिलना उनके व्यक्तित्व का एक अलग ही पहलू था। सर्वधर्म समभाव की मिसाल जो बाबू जी ने कायम की उसकी झलक आज भी पुराने लखनऊ के किसी भी पुराने लोगों से से बातचीत में मिल जाती है। शिया सुन्नी आपस में कई बार उलझे भिड़े ईठ पत्थर से लेकर गोली तमंचा भी चला लेकिन बाबू जी या लालजी टंडन ही ऐसे व्यक्ति थे जिनकी बात हर कोई न सिर्फ सुनता था बल्कि मानता भी था। शिया सुन्नी का विवाद एक नहीं कई बार लालजी टंडन ने ही सुलझाया। लखनऊ पर उनकी किताब भी हाल ही में आई थी जिसमें उन्होंने लखनऊ से जुडे कई ऐसे किस्से भी बताये हैं जो किसी को पता नहीं है।
12 अप्रैल 1935 को लखनऊ में जन्मे लालजी टंडन के शिखर तक पहुंचने का गवाह रहा है लखनऊ। पार्षद से मंत्री और फिर मध्य प्रदेश के राज्यपाल बनना इसी लखनऊ ने देखा है। एमपी के राज्यपाल लालजी टंडन ने राजनीतिक सफर की शुरुआत 1960 में की थी। टंडन दो बार पार्षद चुने गए और दो बार विधान परिषद के सदस्य भी रहे। उन्होंने इंदिरा गांधी की सरकार के खिलाफ जेपी आंदोलन में भी बढ़चढ़कर हिस्सा लिया था। लालजी टंडन को यूपी की राजनीति में कई अहम प्रयोगों के लिए भी जाना जाता है। 90 के दशक में प्रदेश में भाजपा और बसपा की गठबंधन सरकार बनाने में भी उनका अहम योगदान माना जाता है।
1978 से 1984 और 1990 से 96 तक लालजी टंडन दो बार उत्तर प्रदेश विधानपरिषद के सदस्य रहे। 19991 से 92 की यूपी सरकार में वह मंत्री भी बने। इसके बाद लालजी टंडन 1996 से  लगातार तीन बार चुनाव जीतकर विधानसभा पहुंचे। 1997 में फिर से वह विकास मंत्री बने। मायावती के साथ उनका रिश्ता बहुत मजबूत था। मायावती के वह धर्म भाई थे और वे उन्हें राखी बांधती थी।

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