maya mulayamसीबीआई से क्यों नहीं होने दी जांच! बता रहे हैं कैनविज टाइम्स के प्रधान सम्पादक प्रभात रंजन दीन। यह खबर हमने कैनविज टाइम्स से साभार ली है

प्रणब मुखर्जी को राष्ट्रपति चुनाव में समर्थन देने के मुद्दे पर बहुजन समाज पार्टी समाजवादी पार्टी के साथ है और उत्तर प्रदेश में पूर्ववर्ती सरकार के भ्रष्ट मंत्रियों को बचाने के लिए समाजवादी पार्टी बहुजन समाज पार्टी के साथ है। उत्तर प्रदेश के पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय के अकथ भ्रष्टाचार की जांच करने में यूपी के लोकायुक्त को जब पसीने छूटने लगे तब उन्होंने सीबीआई और प्रवर्तन निदेशालय से मामले की जांच कराने की सिफारिश की और इसकी मंजूरी के लिए मुख्यमंत्री अखिलेश यादव के समक्ष फाइल भेज दी। लेकिन प्रदेश की दो ध्रुवी सियासत अचानक ऐसे सखा-भाव में आ गई कि मुख्यमंत्री ने पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय के भ्रष्टाचार की सीबीआई और ईडी से जांच कराने की लोकायुक्त की सिफारिश खारिज कर दी और उसे प्रदेश के उसी सडिय़ल सतर्कता अधिष्ठान को दे दिया, जहां मामले जांच के लिए भेजे जाते हैं कि ‘अंतिम संस्कार’ के लिए भेजे जाते हैं, लोगों को यह फर्क पता है।
उत्तर प्रदेश के लोकायुक्त एनके मेहरोत्रा ने बसपा नेता पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय के भ्रष्टाचार की जांच सीबीआई और इन्फोर्समेंट डायरेक्टरेट (ईडी) से कराने के लिए मुख्यमंत्री को जो औपचारिक सिफारिश भेजी थी, उसके साथ 1426 पेजों का दस्तावेजी प्रमाण भी संलग्न किया था। लेकिन सबूत या दस्तावेज सियासत में काम नहीं आते।
सरकार ने रामवीर उपाध्याय के भ्रष्टाचार का पूरा पुलिंदा सतर्कता अधिष्ठान के सुपुर्द कर दिया और शासन के कारिंदों ने बड़े नपे-तुले तरीके से इस ‘केंद्रित’ प्रकरण का ‘सामान्यीकरण’ करने के लिए यह खबर प्रसारित कराई कि सरकार ने केवल रामवीर ही नहीं बल्कि चार अन्य पूर्व मंत्रियों बाबू सिंह कुशवाहा, रंगनाथ मिश्र, बादशाह सिंह और अवधपाल सिंह यादव के भ्रष्टाचार के मामले भी सतर्कता विभाग को जांच के लिए भेजे हैं। हम बाद के संस्करणों में आपको यह भी बताएंगे कि कुछ मंत्रियों को बीच में ही क्लीनचिट और कुछ को सतर्कता जांच के हवाले कैसे किया गया और कुछ अभी लोकायुक्त की जांच में ही क्यों पड़े हैं।
अभी मसला यह है कि प्रदेश सरकार ने लोकायुक्त की सिफारिश को खारिज कर पूर्व ऊर्जा मंत्री के भ्रष्टाचार की सीबीआई और ईडी से जांच क्यों नहीं होने दी? जब इस मामले की लोकायुक्त की तरफ से जांच हो चुकी तो उसे फिर से सतर्कता अधिष्ठान को सौंपे जाने का क्या औचित्य है? कहीं इसी बहाने सपा सरकार अपने शासनकाल के ऊर्जा घोटालों को गर्त में पड़े रहने देने का उपक्रम तो नहीं कर रही? इस प्रसंग में एक विचित्र तथ्य का आपके समक्ष जिक्र जरूरी है कि मौजूदा सरकार के गृह विभाग ने ऊर्जा विभाग को बाकायदा पत्र लिख कर यह ताकीद की है कि ऊर्जा घोटाले के 20 मामलों की सीबीआई जांच कराने के लिए वह विभागीय मंत्री का अनुमोदन लेकर उसे गृह विभाग को भेजे। एक तरफ घोटाले की सीबीआई जांच की सिफारिश खारिज की जा रही है तो दूसरी तरफ 20 अन्य घोटालों की सीबीआई जांच कराने की सिफारिशें मांगी जा रही हैं। ऐसा करके कहीं ‘डील’ का रास्ता तो नहीं प्रशस्त किया जा रहा? समाजवादी पार्टी की पारदर्शी सरकार को इसका जवाब तो देना ही चाहिए। सनद रहे, गृह विभाग ने ऊर्जा विभाग को आठ जून को आधिकारिक पत्र भेजा था।
सीबीआई और ईडी की पीड़ादायक जांच से राहत पा गए बसपा विधायक व पूर्व ऊर्जा मंत्री रामवीर उपाध्याय ही अब बताएंगे कि समाजवादी पार्टी के शासनकाल में राजीव गांधी ग्रामीण विद्युतीकरण योजना में हुए तकरीबन 16 सौ करोड़ रुपए के घोटाले की जांच जो बसपाई शासनकाल में सतर्कता अधिष्ठान को भेजी गई थी, उस जांच का क्या परिणाम निकला? सतर्कता के बदले सतर्कता… कहीं यही इसका जवाब तो नहीं?

कोई जवाब दें

कृपया अपनी टिप्पणी दर्ज करें!
कृपया अपना नाम यहाँ दर्ज करें

This site uses Akismet to reduce spam. Learn how your comment data is processed.