लाकडाउन के दौरान पूरा लखनऊ बना है इनका परिवार
वो कोई और चिराग होते हैं जो हवाओं से बुझ जाते हैं हमने तो जलने का हुनर भी तूफानों से सीखा है
जी हां ये पंक्तियां जब आपकी जुबान पर होती हैं तो मुठिठयां अपने आप तन जाती है। कदम बाधाओं को पार करने के लिए मचल उठते हैं। सच में कोई काम मुश्किल नहीं है। अगर आप अपने पर आ जायें तो बडी बडी से मुश्किलों को हरा सकते हैं। पूरी दुनिया में कोरोना का कहर बरस रहा है। भारत में भी कोरोना अपने पैर पसार रहा है। कोरोना के खिलाफ जंग में जहां पुलिस और डाक्टर डटे नजर आते हैं वहीं कुछ लोग ऐसे भी हैं जो परदे के पीछे रहकर न सिर्फ इस लड़ाई को अपनी ताकत देते हैं बल्कि आम जन ता के दुख दर्द और तकलीफों को न सिर्फ महसूस करते हैं बल्कि उसे दूर करने के लिए अपना सर्वस्व झोंक देते हैं। प्रधानमंत्री के अनुरोध पर लखनऊ सहित पूरे देश में दीये भले ही आज जलें लेकिन कोरोना के खिलाफ रोशनी की जंग पहले से ही जारी है। अपनी और अपने परिवार की सुख सुविधा को ता क पर रख कर दिन रात कोरोना से बचाव के लिए किए जा रहे लॉकडाउन में जनता को राहत पहुंचाने में जुटी एसडीएम रोशनी यादव के लिए पूरा लखनऊ ही परिवार है। इस परिवार के लिए वह अपने परिवार जिसमें उनके छोटे छोटे भाई बहन की जिम्मेदारी भी उन पर है से भी कई दिन से नहीं मिली हैं। फौलादी इरादों वाली हैं रोशनी यादव जो इस समय एसडीएम हैं लखनऊ डीएम कंट्रोल रूम से जुड़ी हैं।
कोई भी भूखा न रहे
न ड्यूटी पर जाने का कोई समय रहता है न लौटने का । रोशनी को बस एक ही धुन है कि वह ज्यादा से ज्यादा लोगों की समस्याओं का समाधान हर हाल में करें। कोई भी भूखा न रहे अगर किसी को जरा सी भी तकलीफ है तो फिर रोशनी को चैन नही है। वे डीएम कंट्रोल रूम में आने वाली शहरवासियों की सैकड़ों समस्याओं को सुन रहीं हैं साथ ही साथ उनका त्यारित समाधान भी निकाल रहीं हैं। समस्या के समाधान के लिए संबंधित अधिकारी को कार्रवाई के लिए तुरंत दिशा-निर्देश जारी करती हैं। इसके बाद शिकायतकर्ता को कॉल कर उनसे पता भी करतीं हैं कि उनकी समस्या का समाधान हुआ कि नहीं। वे व्यक्तिगत रूप से भी जरूरतमंदों की हरसंभव मदद कर रहीं हैं फिर चाहे वो खाद्य सामग्री पहुंचाना हो या फिर मेडिकल सुविधा उपलब्ध करवाना हो।
और किसी को कोई तकलीफ न हो
लखनऊ में मकान मालिकों द्वारा श्रमिक/विद्यार्थी/कर्मचारी से किराया नहीं मांगने इसका उल्लंघन आपदा प्रबंधन अधिनियम की धारा 51 के अन्तर्गत लोगों को राहत दिलवाने की बात हो या लखनऊ में कम्यूनिटी किचेन की या फिर दवाओं की होम डिलीवरी की सबका जिम्मा संभालने वाली रोशनी यादव को लोग झोली भर भर कर दुआ दे रहे हैं। डीएम कंट्रोल रूम में किसी भी प्रकार की शिकायत को गंभीरता से लेती रोशनी यादव साफ कहती हैं कि कोरोना से लड़ाई हम सबकी लड़ाई है।
संघर्षों से भरा रहा रोशनी का जीवन
रोशनी की पारिवारिक पृष्ठभूमि ग्रामीण है। उनकी शुरूआती पढ़ाई आजमगढ़ में हुई। दिलचस्प बात तो यह है कि वह छात्र जीवन में राजनीति से जुडी रहीं। दुनिया के नामी इलाहाबाद विश्वविद्यालय से पढाई पूरी की और वहां छात्रसंघ चुनाव भी लड़ीं। छात्र राजनीति में उन्हें कई अनुभव हुए जिसने उनके संघर्ष का मार्ग प्रशस्त किया। 2013 में उन्होंने बीटीसी पूरी की और सिदार्थनगर के प्राइमरी स्कूल में टीचर भी बनीं। बच्चों को पढानें में उन्हें बहुत मजा आया। वो बताती हैं कि आप कितने भी तनाव में हो बच्चों के पास आते ही सारे तनाव छू मंतर हो जाते हैं। इसके बाद उन्होंने 2015 से तैयारी शुरू की और 2016 में चयन भी हो गया। सिविल सेवा की तैयारी करने वाले युवाओं के लिए रोशनी सिर्फ इतना ही कहती हैं कि युवा पहले तय करें कि उन्हें कब सिविल का एग्जाम देना है। एक साल मन लगा कर तैयारी करें। लक्ष्य मेन की तैयारी का बनायें तब प्रीलिम का एग्जाम दें। तैयारी के लिए खुद को स्मार्ट बनायें। किताबों का कलेक्शन मत करें। नेट पर बहुत मैटीरियल है। यू टयूब पर स्टडी के अच्छे अच्छे वीडियो पड़े हैं। ये तैयारी में बहुत मददगार होंगे। लड़कियों को आत्म निर्भर बनना होगा
रोशनी बताती हैं कि जब वे इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में पढती थी और छात्रसंघ चुनाव लड रही थी तभी से उन्होंने महसूस किया कि लडकियों की राह आसान नहीं है। ल ड़कियों को जितनी आजादी दिल्ली में है वो अपने यूपी खासतौर पर पूर्वांचल में नहीं है। आज भी तहसील दिवस पर देखती हूं कि कोई महिला अपनी शिकायत स्वयं लेकर नहीं आती वह किसी न किसी पुरुष का सहारा लेकर ही अपनी शिकायत दर्ज कराने आती है। लड़कियों को आत्मनिर्भर होना ही होगा। हालांकि लड़की होने के नाते परिवार ने मुझे रोका नहीं कभी। बस उनके मन में डर था। छात्रसंघ चुनाव लड़ने पर उन्होंने मेरा नैतिक समर्थन भी किया था।
छोटे भाई बहनों की जिम्मेदारी है रोशनी पर
लखनऊ डीएम ऑफिस से सम्बद्ध 2016 बैच की एसडीएम रोशनी यादव अपने घर में सबसे बड़ी हैं। उनके मां-बाप गांव में हैं और शहर में उनके छोटे भाई-बहन साथ में रहते हैं जिनकी देख-रेख की पूरी जिम्मेदारी उन्हीं के ऊपर है। फर्ज के आगे वे अपने छोटे भाई-बहनों की भी देख-रेख नहीं कर पा रहीं है। वे घर इतना देर से पहुंचती हैं कि तब तक सब सो जाते हैं और सुबह ड्यूटी पर भी जल्दी निकलना होता है। रोशनी की कर्तव्य निष्ठा देख कर ये पंक्तियां याद आती हैं
जो तूफ़ानों में पलते जा रहे हैं
वही दुनिया बदलते जा रहे हैं
प्रस्तुति: कमलेश श्रीवास्तव