ऐसा लगता है कि विपक्ष धीरे-धीरे केन्द्र सरकार पर ‘दो संतानÓ की नीति अपनाने के लिये दबाव डालने की रणनीति पर काम कर रहा है। इसका संकेत शिव सेना के सासंद द्वारा राज्यसभा में दो संतान की नीति बनाने के लिये निजी विधेयक पेश किये जाने के बाद कांग्रेस के सांसद और विधिवेत्ता डॉ. अभिषेक मनु सिंघवी की इस दिशा में पहल से मिलता है। सिंघवी ने संसद के वर्तमान बजट सत्र में जनसंख्या नियंत्रण विधेयक नाम से निजी विधेयक पेश करने का निश्चय किया है।
‘हम दो-हमारे दोÓ की नीति पर चलने के लिये राज्यसभा में पेश हो रहे निजी विधेयकों का मकसद प्राकृतिक संसाधनों पर बढ़ती आबादी के बोझ की ओर सरकार का ध्यान आकर्षित करना और ऐसे दंपतियों को लाभ प्रदान करना है, जिनके दो से ज्यादा संतान नहीं है। साथ ही दो संतान की नीति का पालन नहीं करने वाले ‘गरीबी की रेखा से ऊपर के दंपतियों को सरकारी सहायता के लाभ से वंचित करना है।
कहने के लिये ये सदस्यों के निजी विधेयक होते हैं लेकिन सामान्यतया, निजी विधेयक पर चर्चा के दौरान सरकार की ओर से जवाब मिलने या आश्वासन मिलने के बाद इसे वापस ले लिया जाता है। जनसंख्या पर नियंत्रण भी ऐसा ही विषय है, जिसमें सदन में कई बार चिंता व्यक्त की गयी है। जनसंख्या का मुद्दा उठने पर दलील दी जाती रही है कि पर्यावरण प्रदूषण और जल, स्वच्छ वायु, जंगल, जमीन और इसी तरह के अन्य संसाधनों के तेजी से खत्म होने की मुख्य वजह बढ़ती आबादी है और इस पर प्रभावी तरीके से नियंत्रण पाये बगैर स्वच्छ भारत और बेटी बचाओ जैसे अभियान भी पूरी तरह सफल नहीं हो पायेंगे। जनसंख्या नियंत्रण के लिये पंचायत स्तर के चुनावों की तरह ही संसद और विधानमंडलों के चुनावों में भी दो संतानों का फार्मूला लागू कराने के लंबे समय से प्रयास किये जा रहे हैं, लेकिन इसमें अभी तक सफलता नहीं मिल सकी है।
संसद के वर्तमान सत्र के दौरान राज्यसभा में पिछले महीने ही शिव सेना के अनिल देसाई ने जनसंख्या नियंत्रण विधेयक पेश किया था। कांग्रेस सदस्य के निजी विधेयक में कहा गया है कि दो से अधिक संतान वाले दंपति संसद, विधानमंडल और पंचायत चुनाव लडऩे या इनमें निर्वाचन के अयोग्य होंगे। ऐसे दंपति सरकारी सेवा में पदोन्नति के अयोग्य होंगे और केन्द्र तथा राज्य सरकार की समूह-क नौकरी के लिए आवेदन नहीं कर सकेंगे। यही नहीं, अगर विवाहित जोड़ा गरीबी की रेखा से ऊपर की श्रेणी में आता है तो वह किसी भी प्रकार की सरकारी सहायता प्राप्त कर नहीं कर सकेगा। प्रस्तावित विधेयक में यह प्रावधान भी है कि केन्द्र सरकार के कर्मचारियों के लिये दो संतान की नीति का पालन करना अनिवार्य होगा। इसी तरह, विधेयक में सभी माध्यमिक स्कूलों के पाठ्यक्रमों में जनसंख्या नियंत्रण का विषय शामिल करने का भी प्रस्ताव किया गया है।
शिव सेना के अनिल देसाई ने फरवरी महीने में दो संतानों की नीति पर अमल के लिये संविधान में संशोधन करके इसमें अनुच्छेद 47-ए जोडऩे हेतु निजी विधेयक पेश किया था। देसाई भी चाहते हैं कि छोटा परिवार-सुखी परिवार के सिद्धांत का पालन नहीं करने वालों से सारी रियायतें वापस ली जानी चाहिए।
इस संबंध में एक दिलचस्प तथ्य यह भी है कि पिछले साल मई में संपन्न लोकसभा चुनाव के तुरंत बाद ही देश में बढ़ती आबादी का मुद्दा उठाते हुए जनसंख्या पर नियंत्रण के लिये संविधान में अनुच्छेद 47-ए जोडऩे की मांग उठी। इस मांग के समर्थन में संविधान के कामकाज की समीक्षा के लिये गठित न्यायमूर्ति एम.एन. वेंकटचलैया आयोग के सुझाव का भी हवाला दिया गया।
वैसे आबादी नियंत्रण के लिये ‘हम दो-हमारे दोÓ का मुद्दा नया नहीं है। जनसंख्या पर नियंत्रण के उद्देश्य से नरसिंह राव सरकार के कार्यकाल में 79वां संविधान संशोधन विधेयक राज्यसभा में पेश किया गया था। इस विधेयक में प्रस्ताव किया गया था कि दो से अधिक संतानों वाला व्यक्ति संसद के किसी भी सदन या राज्यों के विधानमंडल का चुनाव लडऩे के अयोग्य था।
इस समय, दो संतानों का फार्मूला पंचायत स्तर के चुनावों के लिये कुछ राज्यों में लागू है। इनमें हरियाणा, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, पंजाब, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश और ओडीशा सहित कई राज्य शामिल हैं।
परंतु हाल ही में असम में सत्तारूढ़ भाजपा की सर्बानंद सोनोवाल सरकार के एक निर्णय ने इसे अधिक हवा दे दी। राज्य सरकार ने यह नीतिगत निर्णय लिया कि असम में एक जनवरी, 2021 से दो से अधिक संतान वालों को सरकारी नौकरियां नहीं दी जायेंगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि सरकार जनसंख्या पर नियंत्रण के लिये प्रभावी कदम उठायेगी।

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