राजीव तिवारी
ये कोई योगी ही कर सकता है. वैसे तो उन्हें कल रात ही कि पता चल गया था कि उनके इस भौतिक शरीर को जन्म देने वाले पिता अंतिम सांसें गिन रहे हैं. सूचना कभी भी आ सकती है. कोई दूसरा मुख्यमंत्री या सामान्य व्यक्ति भी होता तो इतनी खबर पर ही उपलब्ध साधन के आधार पर पिता के पास पहुंचने की कोशिश करता. मगर योगीजी ने ऐसा नहीं किया बल्कि एक मुख्यमंत्री के रूप में कोरोना रूपी वैश्विक आपदा के समय अपने कर्तव्यों को अंजाम देने में जुटे रहे. और आशंका के बीच आज सुबह ऐसी ही एक मीटिंग के दौरान जब उन्हें अपने पिताजी के गोलोकवासी होने की सूचना मिली तो वे क्षण भर के लिए विचलित तो हुए और ऐसा होना प्राकृतिक रूप से स्वाभाविक भी है. फिर उन्होंने एक योगी की तरह अपनी भावनाओं को नियंत्रित किया. एक साधक की तरह अपनी भावनाओं और कर्तव्यों के बीच संतुलन साधा. और जुट गए फिर अपने कर्तव्यपथ पर. एक मुख्यमंत्री के रूप में अपने राजधर्म को उन्होंने अपने पुत्रधर्म पर वरीयता देते हुए जो संदेश इस पत्र में अपने परिजनों को भेजा है, उसे पढ़िये आप लोग. अपने पत्रकारीय जीवन में गोरखपुर में बिताये कार्यकाल के दौरान मैंने योगीजी को बतौर गोरक्षपीठ उत्तराधिकारी और बतौर सांसद काफी नजदीक से कवर किया है. उनकी कार्यशैली जानता हूं और उनके मुख्यमंत्री बनने के बाद उनकी गतिविधियों में इसे देख सुन भी रहा हूं. मैं आलोचना ज्यादा करता हूं और प्रशंसा कम. मगर आज कोरोना आपदा के समय योगी जी का निर्णय और परिजनों के प्रति संदेश पढ़ने के बाद ये कहता हूं कि…. “इसे कहते हैं योगी होना.” मुझे गर्व है कि योगी आदित्यनाथ हमारे मुख्यमंत्री हैं. पितृशोक की इस घड़ी में मेरी संवेदनाएं उनके साथ हैं. बाबा से प्रार्थना है कि दिवंगत आत्मा को शांति प्रदान करें और दुःख की इस घड़ी में परिजनों को संबल प्रदान करें.

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