अश्वनी मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को अपराह्न काल में मनाया जाता है. यह पर्व बुराई पर अच्छाई की जीत का प्रतीक है. इस दिन पुरुषोत्तम भगवान राम ने रावण का वध किया था. कुछ स्थानों पर यह त्योहार ‘विजयादशमी’ के रूप में मनाया जाता है. पौराणिक मान्यताओं के अनुसार यह उत्सव माता ‘विजया’ के जीवन से जुड़ा हुआ है. शत्रुओं पर विजय की कामना लिए इस दिन ‘शस्त्र पूजा’ का विधान है. इसके अलावा मशीनों, कारखानों आदि की पूजन की परंपरा है. देश की तमाम रियासतों और शासकीय शस्त्रागारों में ‘शस्त्र पूजा’ बड़ी धूमधाम के साथ की जाती है. इस दिन शस्त्र पूजा के साथ ही अपराजिता, शमी के पेड़ के पूजन का भी महत्व है.
दशहरा का मुहूर्त और पारण
दशहरा पर्व अश्विनी मास के शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को मनाया जाता है. ये 14 अक्टूबर की शाम 6:51 मिनट से शुरू होकर 15 अक्टूबर की शाम 6:02 मिनट तक रहेगा. नौ दिनों तक मां देवी की पूजा करने वाले दशमी को ही पारण करते हैं. पारण उदयातिथि को किया जाता है इसलिए 15 अक्टूबर की सुबह नित्य क्रिया से निवृत्त होने के बाद सुबह में किसी भी वक्त किया जा सकता है.
दशहरा की कथा
पौराणिक मान्यता के अनुसार इस त्यौहार का नाम दशहरा इसलिए पड़ा क्योंकि इस दिन भगवान पुरुषोत्तम राम ने 10 सिर वाले आतताई रावण का वध किया था. तभी से दशानन रावण के पुतले को हर साल दशहरा के दिन इसी प्रतीक के रूप में जलाया जाता है. दशहरा का पर्व दस प्रकार के पापों- काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद, मत्सर, अहंकार, आलस्य, हिंसा और चोरी के परित्याग की प्रेरणा देता है.
महाभारत की कथा के अनुसार– दुर्योधन ने जुए में पांडवों को हरा दिया था. शर्त के अनुसार पांडवों को 12 वर्षों तक निर्वासित रहना पड़ा, जबकि 1 साल के लिए उन्हें अज्ञातवास में भी रहना पड़ा. अज्ञातवास के दौरान उन्हें हर किसी से छिपकर रहना था. इस बीच यदि कोई उन्हें पहचान लेता तो उन्हें दोबारा 12 वर्षों का निर्वासन और 1 वर्ष का अज्ञातवास पुनः झेलना पड़ता. इस कारण अर्जुन ने उस एक वर्ष के अज्ञातवास के लिए अपना गांडीव धनुष को शमी नामक वृक्ष पर छुपा दिया था. अर्जुन खुद वृहन्दला का छद्म रूप धारण कर कार्य करने लगे. एक बार जब उस राजा के पुत्र ने अर्जुन से अपनी गाय की रक्षा के लिए मदद मांगी तो अर्जुन ने शमी वृक्ष से अपने धनुष (शमी पूजा करके) को वापस निकाल कर दुश्मनों को हराया.
दशहरा पूजा की विधि
अपराजिता पूजा अपराह्न काल में की जाती है. इस पूजा की विधि इस प्रकार है-
-
घर से पूर्वोत्तर की दिशा में कोई पवित्र और शुभ स्थान को चिन्हित करें.
-
यह स्थान किसी मंदिर गार्डन आदि के आसपास भी हो सकता है.
-
अच्छा होगा यदि घर के सभी सदस्य पूजा में शामिल हों. हालाकि यह पूजा व्यक्तिगत भी हो सकती है.
-
उस स्थान को स्वच्छ करें और चंदन के लेप के साथ अष्टदल चक्र (आठ कमल की पंखुड़ियों वाला चक्र) बनाएं.
-
इसके बाद संकल्प लें कि देवी अपराजिता कि यह पूजा आप अपने या फिर परिवार के खुशहाल जीवन के लिए कर रहे हैं.
-
उसके बाद अष्टदल चक्र के मध्य में अपराजिताय नमः मंत्र के साथ मां देवी अपराजिता का आह्वान करें.
-
दाईं ओर मां जया को स्थापित करें व बायीं ओर मां विजया को स्थापित करें.
-
तत्पश्चात अपराजितायै नमः, जयायै नमः और विजायैय नमः मंत्रों के साथ शोडषोपचार पूजा करें.