बुधवार, 8 जुलाई को तृतीया युक्त श्रावण गणेश चतुर्थी व्रत है। गणेश जी का व्रत करने वाले यह ध्यान रखें कि कृष्ण पक्ष में चतुर्थी रात में चंद्रोदय के समय रहनी चाहिए और शुक्लपक्ष में मध्याह्न में। इसमें उदया तिथि नहीं ली जाती है। हां, तृतीया के साथ चतुर्थी ले सकते हैं, लेकिन चतुर्थी के साथ पंचमी तिथि नहीं होनी चाहिए। समस्त देवी-देवताओं में प्रथम पूज्य गणेश जी की लीलाएं अत्यंत प्रसिद्ध हैं। उन्होंने ही माता-पिता को सर्वाधिक प्रतिष्ठा प्रदान की।

दूर्वा गणेश जी को उसी तरह प्रिय है, जिस तरह से शिवजी को बेलपत्र और नारायण को तुलसी। गणेश विवेक हैं। विद्यावरिधि बुद्धिविधाता हैं। असल में जिसके पास विवेक होगा, उसी को सनातन धर्म के अनुसार आदिशक्ति दुर्गा, सूर्य, शिव और श्री हरि आदि पंचदेवों की अक्षुण्ण ऊर्जा प्राप्त होगी। गणेश हैं, तभी तो सृष्टि रची जा सकी। ब्रह्मा जी ने सृष्टि रचने से पहले उनकी पूजा की। विघ्न का डर तो रहा ही होगा, पर सकारात्मक ऊर्जा, विवेक संपन्नता की इच्छा भी रही होगी। इसलिए जहां गणेश हैं, वहीं समस्त देवी-देवता विराजमान हैं।

कैसे करें गणेश चतुर्थी व्रत-
लाल रंग के वस्त्र गणेश जी को पहनकर उन्हें बेलपत्र, अपामार्ग, शमीपत्र, दूर्वा अपर्ण करना चाहिए। धन की अच्छी स्थिति होने पर 21 लड्डू , 21 दूब, जामुन आदि के साथ फल, पंचमेवा, पान आदि तो होना ही चाहिए। 10 लड्डूओं का दान करना चाहिए। आरती आदि करके ‘गणेश्वरगणाध्यक्ष गौरीपुत्र गजानन। व्रतं संपूर्णता यातु त्वत्प्रसादादिभानन।।’ श्लोक का उच्चारण करते हुए प्रार्थना करें। गणेश चतुर्थी का व्रत करने वाले को उदय हुए चंद्रमा, श्री गणेश और चतुर्थी माता को गंध, अक्षत आदि के साथ अध्र्य अवश्य देना चाहिए। इसके बाद मीठा भोजन कर सकते हैं।

गणेश चतुर्थी व्रत का महत्व-
इस श्रावण कृष्ण चतुर्थी व्रत के बारे में कहा जाता है कि माता पार्वती जब शिव जी को पति के रूप में पाने के लिए तप कर रही थीं और  शिवजी प्रस्न्न नहीं हो रहे थे, तब उन्होंने यह व्रत किया। व्रत करने के पश्चात उनका शिव से विवाह संपन्न हुआ। हनुमान ने सीता की खोज में जाने पर यह व्रत किया। रावण को जब राजा बलि ने पकड़ कर कैद कर लिया, तब रावण ने यह व्रत किया था। गौतम की पत्नी अहिल्या ने भी इस व्रत को किया था।

गणेश चतुर्थी व्रत संकटों से बचाता है-
यह व्रत कम से कम एक या तीन वर्ष करें। जिनका विवाह नहीं हो पा रहा है, उन्हें तो यह व्रत अवश्य करना चाहिए। शनि की साढे साती से पीड़ित राशियों-धनु, मकर, कुंभ और शनि की ढैया वाली राशियों -मिथुन और तुला वाले लोगों को भी यह व्रत संकटों से बचाता है।

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