• अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार की अध्यक्षता कर रहे आचार्य कृष्णकांत ने कहा कि रामकथा जीवन के संदेहों का निवारण करती है
केन्द्रीय संस्कृति विभाग, अयोध्या शोध संस्थान और रामायण केंद्र भोपाल की ओर से ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण के अंतर्गत रविवार 11 अक्टूबर को रामायण के विविध आयाम विषयक अंतर्राष्ट्रीय वेबिनार का आयेाजन किया गया। इसकी अध्यक्षता करते हुए भोपाल के भारतीय प्राच्य विद्या एवं रामायण विशेषज्ञ आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी ने कहा कि रामकथा जीवन के संदेहों का निवारण करने वाली कथा है।
आचार्य कृष्णकान्त चतुर्वेदी ने कहा कि रामायण एक आंदोलन है जो जीवन को सार्थकता प्रदान करता है। मुख्य अतिथि थाइलैंड के बैंकाक से संस्कृत स्टडीज सेंटर के कोआर्डिनेटर डॉ.विलियर्ट वन दे बोगार्ट ने सुन्दर प्रस्तुति के माध्यम से थाईलैंड में प्रचलित राम संस्कृति की रोचक जानकारियां दी। उन्होंने बताया कि थाईलैंड में भी एक नगर का नाम अयोध्या है। वहां पर मुखौटा रामलीला काफी लोकप्रिय है। वहां राम और रामायण से सम्बंधित अनेक स्थल मिलते हैं।
श्रीलंका के इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण के समन्वयक बाला संकुरातरी ने रावण के संदर्भों के माध्यम से भारत और श्रीलंका के सम्बंधों को स्पष्ट किया वहीं लंका द्वीप के निकट 50 से भी अधिक रामायण से जुड़े स्थलों की भी जानकारी दी। उस जानकारी को वैश्विक स्तर पर ले जाने के लिए वह एक फिल्म भी बना रहे हैं। उन्होंने बताया कि लंका के पहले सेटेलाइट का नाम रावण है। उन्होंने अपनी पुस्तक माई नेम इज रावण की भी जानकारी दी।
मुख्य वक्ता के दिल्ली के वरिष्ठ साहित्यकार एवं शिक्षाविद् डॉ.लल्लन प्रसाद ने रामायण को उत्कृष्ठ साहित्यिक ग्रंथ की कहते हुए बताया कि रामायण में जीवन के सभी रसों का समावेश है। अयोध्या के ज्योतिषाचार्य बालसंत मुकुंदाचार्यजी महाराज ने कहा कि रामायण के वृहद अर्थ को सहजता से बताया कि रामायण महज एक पाठशाला ही नहीं एक प्रयोगशाला भी है। जिस पर रामजी की कृपा हो जाती है उसे राम स्वयं मिल जाते हैं। झांसी के बाल संत शशिशेखरजी महाराज ने रामकथा वाचन की संगीतमय प्रस्तुति दी। सिया राम मई सब जग जानी से आरम्भ कर विविध प्रसंगों के माध्यम से श्रीराम के सर्वव्यापकता, निराकार, साकार को उदहारण सहित बताया।
अयोध्या शोध संस्थान के निदेशक डॉ.योगेंद्रप्रताप सिंह ने कहा कि रामायण के अध्ययन और शोध से न केवल संस्कृति बल्कि इतिहास के भी कई पक्ष सामने आते हैं। हमें अपने इतिहास के पुनर्लेखन करना चाहिए जो रामायण संस्कृति के गौरव के अनुरूप हो। ग्लोबल इनसाइक्लोपीडिया ऑफ रामायण, मध्य प्रदेश और रामायण केंद्र भोपाल के निदेशक डॉ.राजेश श्रीवास्तव देश विदेश में प्रचारित रामकथा से लेकर रामकथा वाचन की परम्पराओं की जानकारी दी। जगमोहन रावत के तकनीकी मार्गदर्शन में हुई इस वेबिनार में वेबिनार का आयोजन किया गया।

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